Tera Kya Hoga Kaliya

Hardbound
Hindi
9789350721452
1st
2012
292
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रवीन्द्र कालिया के यहाँ विट और ह्यूमर का सानुपातिक प्रयोग मिलता है। अपनी कथाओं के बहुत गम्भीर स्थलों पर भी वे विट का साथ नहीं छोड़ते। ' तेरा क्या होगा कालिया' चूँकि व्यंग्यों का संकलन है, यहाँ विट और चुहल बाईप्रोडक्ट की तरह न होकर केन्द्र में है। सन् अस्सी के दौर में साप्ताहिक 'दिनमान' के अन्तिम पृष्ठ पर 'इतिश्री' स्तम्भ के अन्तर्गत ये व्यंग्य शाया हुए और बहुत वर्षों बाद यहाँ एकत्र हैं। मज़ाक- मज़ाक में शुरू हुआ यह लेखन (देखें भूमिका) उत्तरोत्तर गम्भीर और दस्तावेजी स्वरूप धारण करता गया। साठ के दशक के लेखन में भारतीय राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए साहित्य में जिस असन्तोष और मोहभंग का स्वर आना शुरू हुआ, वह अस्सी तक आते-आते दिशाहारा की स्थिति प्राप्त कर लेता है। राजनीतिक घपले, भ्रष्टाचार का बोलबाला, लाल फीताशाही, घोटाले, प्रपंच, झूठ और नेतृत्वहीनता की स्थिति को हम इन व्यंग्यों के सहारे बखूबी पकड़ सकते हैं। ये व्यंग्य सिर्फ राजनैतिक अथवा साहित्यिक नहीं, एक सजग रचनाकार द्वारा अपने समय व समाज की सम्यक और सन्तुलित पड़ताल हैं। इस दृष्टि से यह पुस्तक अपने समय का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है।
- कुणाल सिंह

रवीन्द्र कालिया (Ravindra Kalia)

रवीन्द्र कालिया जन्म : जालन्धर, 1938निधन : दिल्ली, 2016रवीन्द्र कालिया का रचना संसारकहानी संग्रह व संकलन : नौ साल छोटी पत्नी, काला रजिस्टर, गरीबी हटाओ, बाँकेलाल, गली कूचे, चकैया नीम, सत्ताइस साल की उम

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