कलाकार और लेखकों से भारतीय जनता की बड़ी अपेक्षाएँ रही हैं। लोकसत्ता समाजवादी राष्ट्र के नाते भारत को खड़ा करने के लिए इन बातों की आवश्यकता भी है, जो आम आदमी के बारे में लिखते हैं, जो आम आदमी की बोली में बोलते हैं, वही सही लेखक होते हैं। दलितों का संघर्ष सांस्कृतिक संघर्ष भी है। दलित आन्दोलक जब प्रस्थापितों के विरुद्ध आन्दोलन करते हैं, उस समय दलित लेखकों को इन कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना चाहिए। उनको प्रेरणा मिले इस पद्धति का लेखन करना चाहिए। मराठी साहित्य में, भारतीय वर्णवादी साहित्य में गम्भीर वैचारिक गलतियाँ हुई हैं। इस बारे में दलित लेखकों को लिखना चाहिए।
शरणकुमार लिंबाले
जन्म : 1 जून 1956
शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी.
हिन्दी में प्रकाशित किताबें : अक्करमाशी (आत्मकथा) 1991, देवता आदमी (कहानी संग्रह) 1994, दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र (समीक्षा) 2000, नरवानर (उपन्