Kalam Ko Teer Hone Do

Author
Paperback
Hindi
9789352292776
1st
2015
304
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हिन्दी पट्टी के आदिवासी समाज, विशेष रूप से झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के राजनीतिक संयों पर तो थोड़ा ध्यान दिया गया है, लेकिन उनकी समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा, सादगी और करुणा को सामने लाने का उपक्रम प्रायः नहीं हुआ है। इधर हिन्दी के कतिपय कवियों ने जरूर कुछ कविताएं लिखी हैं लेकिन उनमें स कुछ सूचनाओं और घटनाओं को दर्ज भर किया गया है। उन सूचनाओं को जब कवि ही अपने जीवनानुभव का हिस्सा नहीं बना पाते, तो भला पाठकों की अनुभूति में वे क्या प्रवाहित होंगी। दरअसल, प्रकृतिविहीन नपी-तुली ज़िन्दगी जीने वाला तथाकथित सभ्य समाज आदिवासियों की महान सांस्कृतिक विरासत को समझ भी नहीं सकता।


इससे अलग, आदिवासी समाज के संघर्ष और करुणा की गाथाएँ उनकी आदिवासी भाषाओं में तो दर्ज हैं ही, इधर कुछ आदिवासी कवियों ने भी हिन्दी में लिखने की पहल की है, जो स्वागत योग्य है। इसकी शुरुआत तो काफी पहले हो गयी थी, लेकिन पहली बार 1980 के दशक में रामदयाल मुंडा के कविता-संग्रह के प्रकाशन के साथ उस महान सांस्कृतिक विरासत को हिन्दी कविता के माध्यम से व्यक्त करने का उपक्रम सामने आया। बाद में सन् 2004 में रमणिका फाउंडेशन ने पहले-पहल सन्ताली कवि निर्मला पुतुल की कविताओं के हिन्दी अनुवाद का द्विभाषी संग्रह 'अपने घर की तलाश में प्रकाशित किया। उसके बाद ही आदिवासी लेखन को लेकर हिन्दी समाज गम्भीर हुआ और यह परम्परा लगातार समृद्ध होती गयी। अनुज लुगुन की कविताओं ने तथाकथित मुख्यधारा में आदिवासी कविता को पहचान दिलाने में एक अहम भूमिका निभाई।


रमणिकाजी आदिवासियों के राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक संघयों के साथ-साथ उनकी साहित्यिक गतिविधियों में भी सक्रिय रूप से शामिल होती रही हैं। अपनी पत्रिका के माध्यम से भी उन्होंने कई आदिवासी कवियों व कथाकारों को सामने लाने का काम किया है। उन्होंने आदिवासी भाषाओं की कविताओं, कहानियों, लोक-कथाओं, मिथकों व शौर्यगाथाओं के अनुवाद भी प्रकाशित कराये हैं। अब वे पहली बार, हिन्दी में लिखने वाले झारखंड के 17 कवियों की चुनी हुई कविताओं का यह संग्रह सामने ला रही हैं, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। हिन्दी कविता का लोकतन्त्र दलितों, स्त्रियों आदि के साथ-साथ इन आदिवासी कवियों को शामिल करने पर ही बनता है। यह विमर्श सबसे नया है लेकिन उसकी ज़मीन बहुत मज़बूत है।


- मदन कश्यप

रमणिका गुप्ता (Ramnika Gupta)

रमणिका गुप्ता जन्म : 22 अप्रैल, 1930, सुनाम (पंजाब)बिहार/झारखण्ड की पूर्व विधायक एवं विधान परिषद् की पूर्व सदस्य । कई गैर-सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं से सम्बद्ध तथा सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीत

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