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बनजारा जाति : समाज और संस्कृति

आदिवासी और दलित साहित्य
Hardbound
Hindi
9788170552406
2nd
2020
244
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सभ्यता की मुख्य धारा से कटी हुई जनजातियों की अपनी संस्कृति, अपनी लोकभाषा, अपना लोक-साहित्य और अपनी अलग पहचान है। आज इनको सभ्यता की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए निरन्तर प्रयास के रूप में देश-विदेश में शोध और अध्ययन हो रहे हैं।

प्रस्तुत पुस्तक में भारत की बनजारा जनजाति के सम्बन्ध में... उनके इतिहास, संस्कार, तीज-त्यौहार, संस्कृति और साहित्य पर एक गम्भीर तथा यथार्थपरक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।

इस अध्ययन की विशेषता है कि इसका लेखक स्वयं बनजारा जनजाति का सदस्य है और उसने प्रथम स्रोत से जानकारी और विवरण जुटायें हैं। इस पुस्तक में दिये गये तथ्यों की प्रामाणिकता इसी कारण और भी पुष्ट होती है।

पूरी पुस्तक में बनजारा जाति के उत्सवों, संस्कारों और तीज-त्यौहारों पर गाये जाने वाले गीतों से दिये गये विवरणों की पुष्टि की गयी है ।

बनजारा जनजाति का यह अन्तरंग और प्रामाणिक अध्ययन हमारे सांस्कृतिक एकीकरण के महान प्रयासों की एक मज़बूत कड़ी बनता है और अश्रुतपूर्व जानकारियाँ उपलब्ध कराता है।

यशवन्त जाधव (Yashvant Jadhav )

यशवन्त जाधव 16 नवम्बर, 1955 को जन्मे डॉ. जाधव, आ. प्र. ओपन यूनिवर्सिटी, हैदराबाद में, हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। बनजारा जाति में ही जन्म लेने के कारण, सभ्यता की मुख्य ध

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