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झारखण्ड के आदिवासियों के बीच -
डॉ. वीर भारत तलवार का यह लेखन किसी एक विधा विशेष के अन्तर्गत नहीं आता। इसमें बौद्धिक चिन्तन-मनन है तो सरस जीवनी और संस्मरण भी हैं; ख़तो-किताबत है तो रिपोर्टिंग और रिपोर्ताज़ भी हैं; राजनीतिक और भाषिक विवेचन है तो डायरी और साहित्यिक आलोचना भी है। इसका विषय जितना राजनीतिक है उतना ही समाजशास्त्रीय है। इसके अन्तर्गत एन्थ्रोपॉलोजिकल क़िस्म के फ़ील्डवर्क साथ ही राजनीतिक आन्दोलन का इतिहास रेखांकित किया गया है। वास्तव में यह पुस्तक 1970 के दशक में एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के आदिवासी इलाक़ों में गुज़ारे दस वर्षों के जीवन्त अनुभवों का विस्तृत और दुर्लभ दस्तावेज़ है।
विद्वान लेखक ने इस कृति में झारखण्ड की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं पर गहरी सूझबूझ एवं अन्तर्दृष्टि के साथ गम्भीर विवेचन किया है। इससे इसमें न केवल झारखण्ड के आदिवासी जीवन और व्यक्तित्व का आन्तरिक परिचय मिलता है, उसकी आत्मा का सौन्दर्य भी झलकता है। आदिवासियों के भयंकर आर्थिक शोषण तथा पीड़ादायक विस्थापन की चिन्ताओं के साथ लेखक ने उनके ग्रामीण जीवन एवं लोक जीवन का सरस स्पर्श भी किया है।
सालों-साल आदिवासियों के बीच रहकर लेखक ने जो अनुभव अर्जित किये उससे उस समाज के विभिन्न पक्षों का ठोस प्रामाणिक विवेचन होने के कारण निःसन्देह यह एक अनूठी कृति बन गयी है।
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