वह अपने अनुभवों और उनकी अभिव्यक्ति के सिलसिले में किसी तरह का दबाव कबूल करने के लिए तैयार नहीं है। वह ‘पार्टी लाइन’ के नुक्ते-नजश्र से नहीं, वरन सहज मानवीय दृष्टि से हालात को परखता है और इसीलिए वह पूरी अजशदी के साथ ‘अपना बयान’ लिपिबद्ध कर सकता है। उसे पार्टी लाइन की कोई फिक्र नहीं है क्योंकि वह जानता है कि आम आदमी के दुख-दर्द को ‘पार्टी लाइनें’ कई बार नजर अन्दाज कर देती हैं, पार्टी की राह न तो जिश्न्दगी की राह है, न आम आदमी के एहसासात की। उसे मालूम है कि पार्टी को राजनीतिक स्तर पर बहुत-से समझौते भी करने पड़ते है और अक्सर पार्टी का नजरिया डाग्मैटिक हो जाता है। इसीलिए मण्टो आश्वस्त है कि जब तक वह आम आदमी की तकलीफे का सहभागी बन कर उनका सच्चा और खरा चित्रण कर रहा है, और जनता के दुश्मनों की ओर इशारा कर रहा है। तब तक उसे प्रगतिशील कहलाने के लिए किसी बिल्ले या तमग़े की जरुरत नहीं है।
मण्टो अपने चारों ओर फैले झूठ, फ़रेब और भ्रष्टाचार पर से पर्दा उठा कर, समाज के उस हिस्से को पेश करता है, जिसे लोग या तो स्वीकार करने से कतराते हैं या फिर ऐसा तो होता ही है के से अन्दाज़ ही कर सकता है। वह इस सारे भ्रष्टाचार के रू-ब-रू हो कर, उसकी भर्त्सना करता है। लेकिन वह कोरा सुधारक नहीं है, वरन एक अत्यन्त भावप्रवण संवेदनशील व्यक्ति है, इसीलिए वह समाज के इस 'गर्हित' पक्ष-रंडियों, भड़वों, दलालों, शराबियों में दबी-छिपी मानवीयता की तलाश करता है। वह समाज के निचले तबके के लोगों की ओर मुड़ता है और 'आहत अनस्तित्व' को छूने के लिए अपने 'प्राणदायी हाथ' बढ़ाता है।
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