मण्टो पर बातें करते हुए अचानक देवेन्द्र सत्यार्थी की याद आ जाती है। मण्टो का मूल्यांकन करना हो तो मण्टी और मण्टी पर लिखे गये, दुनियाभर के लेख एक तरफ मगर सत्यार्थी मण्टो पर जो दो सतरें लिख गये, उसकी नज़ीर मिलनी मुश्किल है। 'मण्टो मरने के बाद ख़ुदा के दरबार में पहुँचा तो बोला, तुमने मुझे क्या दिया... वयालिस साल। कुछ महीने, कुछ दिन । मैंने तो सौगंधी को सदियाँ दी हैं।' 'सौगंधी' मण्टो की मशहूर कहानी है। लेकिन एक सौगंधी ही क्या मण्टो की कहानियाँ पढ़िये तो जैसे हर कहानी 'सौगंधी' और उससे आगे की कहानी लगती है।
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