समाज और व्यक्ति के खरे आलोचक के इलावा मण्टो का एक दूसरा रूप ज़िन्दगी के दबे छिपे कोने उघाड़ने वाले, ज़िन्दगी की हास्य-व्यंग्य भरी स्थितियाँ चित्रित करने वाले कहानीकार का भी था। मन्त्र, मैडम डिकॉस्टा, मम्मी, प्रगतिशील, ब्लाउज़, बू, खुशिया और बाबू गोपीनाथ ऐसी कहानियाँ हैं, इन्हें हालाँकि मण्टो की अपार मानवीयता का स्पर्श तो मिला है, लेकिन इनमें आक्रोश का सर्वथा अभाव है। दरअसल ये कहानियाँ अपने आप में एक बिल्कुल ही अलग वर्ग निर्मित करती हैं। इनमें कहानीपन ज़्यादा है, नाटकीयता कम है और जुम्लेबाज़ी की वह चुस्ती दिखायी पड़ती है जो मण्टो की अपनी ही विशेषता है।
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