मण्टों की कहानी में अनुभव की सच्चाई भी है और ज़ुल्म के एहसास की प्रेरणा भी । इसीलिए मैं हतक़ को वेश्याओं की ज़िन्दगी पर किसी भारतीय कथाकार द्वारा लिखी गयी कहानियों में पहली पंक्ति पर रखना चाहूँगा । हतक़ में मण्टो के दृष्टिकोण की लगभग सभी विशेषताएँ हैं— आक्रोश, दर्द और अपार मानवीयता। वेश्यावृत्ति की ज़लालत का ऐसा अपूर्व चित्र मण्टो ने इसमें खींचा है कि सेठ द्वारा सुगन्धी को नापसन्द कर दिये जाने वाले प्रसंग के बाद पाठक अनायास सुगन्धी के दिल की कुढ़न और उसके फूट पड़ते आक्रोश के सहभागी बन जाते हैं। मण्टो ने कहानी में स्पष्ट रूप से दो वर्गों का चित्रण किया है- पहला वह जो शोषण करता है, जो ख़रीदार है और जो चूँकि पैसे देता है, इसलिए वह अपनी पसन्दगी या नापसन्दगी जाहिर कर सकता है। दूसरा वर्ग सुगन्धी का है, जो ज़लालत-भरी ज़िन्दगी जीते हुए भी, मानवीयता से रहित नहीं है, लेकिन जो इस शोषण का शिकार बनने-बिकने के लिए मजबूर है। सुगन्धी इस दूसरे वर्ग में है और चूँकि वह सेठ से अपने अपमान का बदला नहीं ले पाती, इसीलिए उसका सारा गुस्सा माधो पर उतरता है जो सुगन्धी का सिर्फ़ आर्थिक शोषण ही नहीं करता, वरन उसकी सहज अच्छाई का भी फ़ायदा उठाता है। माधो के प्रति सुगन्धी के मन में जो गुस्सा है- और वह जो दरअसल मण्टो के अन्तर का आक्रोश है- जिसे वह उस सारी व्यवस्था के मुँह पर जैसे एक जन्नाटे के थप्पड़ की तरह जड़ देता है।
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