"अयोध्या के स्थानीय निवासी बाबरी मस्जिद के भीतर प्रतिमा प्रकट होने के स्मरणोत्सव के रूप में हर साल राम-प्रकट उत्सव मनाया करते थे, जिसमें कुछ सौ लोग ही शामिल होते थे।... 4 जनवरी 1984 को आयोजित चौंतीसवीं वर्षगाँठ विशेष उत्साह के साथ मनायी गयी, क्योंकि इस अवसर पर पहली बार विवादित ढाँचे के बीच वाले बुर्ज पर हनुमान पताका फहराई गयी। यह ख़बर जंगल की आग की तरह फैल गयी और लोगों की भारी भीड़ वहाँ जुटने लगी। इसके अलावा महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि गर्भगृह में पहली बार हवन किया गया जिसमें अयोध्या के लगभग सभी प्रमुख महन्तों ने भाग लिया ।... उस वर्ष के समारोह के संयोजक विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) धीरेन्द्र सिंह जफ़ा....’’
पूर्व प्रधानमन्त्री भारत रत्न पी. वी. नरसिम्हा राव द्वारा लिखित पुस्तक ‘अयोध्या 6 दिसम्बर 1992' का एक अंश
“इस प्राकट्योत्सव में पूर्व विंग कमांडर धीरेन्द्र सिंह जफ़ा जो बांग्लादेश-मुक्ति के समय विमान दुर्घटना में गिरफ़्तार होने के फलस्वरूप पाकिस्तान की जेल में थे और शिमला समझौते के तहत रिहा हुए थे, प्रमुख भूमिका निभा रहे थे। पूरे विवादित स्थल को झालरों से सजाया गया था । प्राकट्योत्सव के दिन मुख्य अतिथि ने यहाँ विवादों को सुलझाकर मन्दिर निर्माण की बात भी की... इस प्राकट्योत्सव के बाद अयोध्या में विभिन्न मन्दिरों से रथ और घोड़े, हाथी सजाकर जुलूस गाजे-बाजे के साथ निकला। नगर के प्रमुख मार्गों पर प्रसन्नताबोधक गाजे-बाजे के साथ ही गोले दागे गये । लगभग 10 बजे से आरम्भ हुआ यह जुलूस शाम तक अयोध्या की सड़कों पर घूमता रहा ।"
- 'जनमोर्चा' समाचार पत्र के पूर्व सम्पादक शीतला सिंह
द्वारा लिखित पुस्तक 'अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद
का सच' का एक अंश
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