Dhirendra Singh Jafa
विंग कमांडर धीरेन्द्र सिंह जफ़ा ने वर्ष 1954 में भारतीय वायुसेना में फाइटर पायलट के रूप में कमीशन प्राप्त किया। सन् 1965 के
युद्ध में अदम्य साहस के साथ उन्होंने पाकिस्तान पर 23 ज़बरदस्त हमले किये। विदेश से उच्च सैन्य शिक्षा प्राप्त करने पर जनवरी 1971 में उनका चयन भारतीय वायुसेना प्रमुख के परिसहायक अफ़सर ( एडीसी) पद पर हुआ। परन्तु जब पाकिस्तान के साथ युद्ध अवश्यम्भावी हो चला, तब उन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रतिष्ठित पद एवं परिवार को पीछे छोड़कर, युद्ध की अग्रिम पंक्ति में खड़े हो गये । शत्रु पर बारम्बार हमलों के दौरान, भीषण ज़मीनी गोलाबारी के कारण उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उन्हें एक साल तक पाकिस्तान में युद्धबन्दी के रुप में रहना पड़ा । स्वदेश वापसी पर, रणभूमि में साहस के लिए उन्हें 'वीर चक्र' से नवाज़ा गया ।
जफ़ा ने देश का सिपाही बनकर सरहदों की रक्षा के लिए जान जोखिम में डाली; साथ ही कलम का सिपाही बन युद्ध के अनुभवों एवं क्रिया-कलापों को अपनी पुस्तक 'जब भी देश पुकारेगा...' में लिपिबद्ध किया, जो युवाओं के लिए देश-सेवा की भावना का अद्भुत प्रेरणा-स्रोत है । इसके अलावा उन्होंने 'शिवनारायन', 'नजमा', 'दो अण्डे' और 'पेंशनर' जैसी कहानियों में सामाजिक, पारिवारिक आदि प्रसंगों को केन्द्र में रखते हुए उनकी अर्थवत्ता को उजागर किया है ।
अपने बहुआयामी जीवन की यात्रा में आगे बढ़ते हुए जफा ने 'जय सियाराम' कृति की रचना की जो समाज के लिए दिशावाहक है । इस रचना में लेखक, धर्म, समुदाय, अस्तित्व एवं राजनीति के मिश्रण की संकीर्णता की ओर संकेत करता है। साथ ही इस कृति में भक्ति की सर्वव्यापकता को प्रस्तुत किया गया है जिसके प्रभाव की दीर्घता लम्बे समय तक पाठकों के मन-मस्तिष्क पर छायी रहती है ।