ज्योतिष विद्या की लोकप्रियता सर्वमान्य है। जन-जीवन में इसका महत्त्व कल था आज है और कल भी रहेगा। ज्योतिष शास्त्र पर अध्ययन, अन्वेषण, मनन तथ चिन्तन की सम्भावनाएँ सदा बनी रहती हैं।
यह विद्या समाज के प्रत्येक वर्ग और क्षेत्र में हमेशा चर्चा का विषय रहती है, परन्तु इस के विधिवत शिक्षण और अध्ययन की कहीं उचित व्यवस्था नहीं है। उच्च सरकारी संस्थाओं में भी इस शास्त्र को कोई मान्यता प्राप्त नहीं है। ऐसी स्थिति में ज्योतिष के जिज्ञासु पाठकों में इस विद्या का ज्ञान प्रायः अधूरा रह जाता है।
'ज्योतिषशास्त्र का पहला पाठ' कृति उन पाठकों के मार्ग-दर्शन के लिए है जो इस शास्त्र में प्रवेश द्वार के आकांक्षी हैं। यहाँ अत्यन्त सरल एवं व्यावहारिक शैली में ज्योतिष के बारे में आरम्भिक ज्ञान दिया गया है। यह रचना कठिन शास्त्रीय शब्दावली से पूर्णतः मुक्त है। अतः सभी वर्गों के पाठकों के लिए सुबोध और पठनीय है।
सुधी लेखक ने यहाँ ज्योतिषशास्त्र, ज्योतिष वेत्ता तथा ग्राहक के बीच की दूरियों को मिटाने का सहज प्रयास किया है। इसलिए यह रचना रोचक भी बन पाई है। इस पुस्तक को पढ़ने के उपरान्त कोई भी पाठक ज्योतिष के राज-मार्ग पर सुगमता से आगे बढ़ सकता है।
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