Naye Mausamon Ka Pata

Bashir Badra Author
Paperback
Hindi
9789357756587
1st
2024
176
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मीर, कबीर और बशीर एक साथ जो नाम आये हैं ये दरअसल इसी हक़ीक़ी ज़ुबान का तससुल हैं जो यहाँ के लोग बोलते हैं और यही ज़ुबान परवान चढ़ी है। अवाम की बोलचाल की ज़ुबान उसमें अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी ज़ुबान हमारी सदियों की ज़िन्दगी और उसकी तहज़ीब में रच बस कर आये हैं। और अब हिन्दुस्तानी मिज़ाज और हिन्दुस्तानी आत्मा का मुनासिब इज़हार हैं। बशीर बद्र से पहले बरसों से आलमी लहजे के जो लफ़्ज़ हमारी ज़िन्दगी और हमारे शहरों में आ गये थे लेकिन ग़ज़ल के लिए खुरदुरे थे। यही खुदुरे लफ़्ज़ अब बशीर बद्र की ग़ज़ल में नरम-सच्चे और मीठे हो गये हैं। आज की ज़िन्दगी का एहसास उनकी ग़ज़ल है और वो ग़ज़ल की दुनिया में यक्ताँ हैं। आज ग़ज़ल का कोई तज़किरा बशीर बद्र के बग़ैर मुकम्मल नहीं हो सकता ।

प्रदीप साहिल (Pradeep Sahil)

प्रदीप ‘साहिल’ जन्म : 1-12-1969शिक्षा : बी.ए. ऑनर्स (हिन्दी) रामलाल आनंद (प्रातः) महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली), एम.ए. (हिन्दी) हिन्दू महाविद्यालय, (दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली), एडवांसडि

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बशीर बद्र (Bashir Badra)

बशीर बद्रनाम : सैयद मोहम्मद बशीर तख़ल्लुस बद्र शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से)। पुरस्कार : वर्ष 1969 में ग़ज़लों के प्रथम प्रकाशित संकलन, 'इकाई' पर उर्दू अकादमी उत्तर प्रदे

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