पाकिस्तान डायरी -
उस वक़्त से अब तक एक साल गुज़र चुका है, ‘दैनिक भास्कर’ में हर हफ़्ते ‘पाकिस्तान डायरी’ छपती है और इसको पढ़ने वाले मुझे दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद में मिलते हैं। दिल्ली की मुख्यमन्त्री श्रीमती शीला दीक्षित के घर के लॉन पर चाय का लुत्फ़ उठाते हुए और वहाँ राजस्थान के एक अस्सी साला मेहमान अदीब श्री विजयदान देथा मुझे पहचान रहे हैं, मेरे लेखन की दाद दे रहे हैं और मेरा सर उनके आशीर्वाद से झुक रहा है। बचपन में हम सब भी चाँद तक पहुँचने के लिए दिल ही दिल में कैसी सीढ़ियाँ बनाते हैं, ‘दैनिक भास्कर’ में छपने वाली ‘पाकिस्तान डायरी’ भी एक ऐसी ही सीढ़ी है, जिसे मैंने शब्दों से बनाया है और इस पर से होकर हिन्दुस्तानी जनता के दिलों में उतरने की कोशिश की। उन्हें बताना चाहा है कि आपके और हमारे दु:ख एक जैसे हैं। इन दु:खों से निबटने का एक ही तरीक़ा है कि हर बन्दूक़ की नाल में हम गिरह लगा दें और तोप की नाल में एक फ़ाख़्ता रख दें- अमन की फ़ाख़्ता। ‘पाकिस्तान डायरी’ अगर किताब की शक्ल में आप तक पहुँच रही है। तो इसका श्रेय अरुण माहेश्वरी को जाता है जो इतवार के रोज़ उसे पढ़ते हैं और ख़ुश होते हैं और अब उन्होंने दूसरों को भी इस ख़ुशी में शामिल करने का फ़ैसला किया है।
–ज़ाहिदा हिना
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