गद्य की लघु विधाओं में डायरी अपनी एक अर्थवान पहचान बना चुकी है। लगभग सभी भाषाओं में महत्त्वपूर्ण डायरियाँ लिखी गयी हैं। हिन्दी उपन्यासों और कहानियों में एक शिल्प के रूप में इनका प्रयोग होता रहा है पर एक स्वतन्त्र विधा के रूप में इनका लेखन अभी कम ही हुआ है। लेखकों की प्रकृति के अनुसार डायरियों के रूप-रंग में भिन्नता स्वाभाविक है। कुछ डायरियों में किसी का नामोल्लेख नहीं होता। कुछ में वास्तविक तिथियों, घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख रहता है। कुछ नितान्त काल्पनिक भी होती हैं।
प्रस्तुत डायरी में भाषा, साहित्य, समाज, राजनीति आदि के बारे में लेखक का अपना अनुभव और गम्भीर चिन्तन तो है ही कुछ घटनाओं और व्यक्तियों से सम्बन्धित ऐसे तथ्य भी हैं जिनका साहित्यिक-राजनीतिक सन्दर्भों के लिए ऐतिहासिक महत्त्व है। लेखक के अनुसार इन तथ्यों और विवरणों में सत्य का आग्रह है जिनका प्रामाणिक तौर पर उपयोग किया जा सकता है। इस डायरी में कुछ यात्रा प्रसंग भी हैं जो उस स्थान विशेष के इतिहास, भूगोल और परिवेश से सम्बन्धित कई अल्पज्ञात सूचनाएँ प्रस्तुत करते हैं। यह प्रतिदिन लिखी जाने वाली निजी दैनंदिनि नहीं है बल्कि इसमें एक विस्तृत कालखंड का लोकानुभव अत्यन्त संक्षिप्त रूप में लिपिबद्ध है।
आशा है पाठक अपनी-अपनी रुचि के अनुसार विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की इस कृति का आस्वाद करेंगे।
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