निब के चीरे से - ओम नागर की डायरी 'निब के चीरे से' इस योजना में पुरस्कृत कथेतर गद्य की पहली किताब है। कथेतर गद्य की कई प्रमुख विधाओं का 20वीं सदी में क्रमशः लोप हुआ है। अब तो जो कुछ भी लिखा जा रहा है। वह अधिकांशत: कम्प्यूटर, टेबलेट और मोबाइल पर बहुत हद तक टीपने जैसा भी लिखा जा रहा है। जो फेसबुक और ब्लॉग पर अमूमन दिखता रहता है। डायरी या पत्र लिखने की वह आत्मीयता छीज रही है। कथेतर गद्य में इधर जिन कुछ विधाओं का पुनर्वास हो रहा है उनमें डायरी भी है। ओम नागर की यह डायरी कोटा शहर के अन्तरंग जीवन समाज का कोलाज है जिसमें साधारण, अतिसाधारण, अपरिचित और अल्पपरिचित लोगों की कथा पर रोशनी है। लेखक की निगाह उधर अधिक गयी है जहाँ शोषित प्रवंचित मनुष्य के जीवन में अन्धेरा है। अन्धेरे में एक बारीक प्रकाश रेखा के उल्लास को भी उनकी नज़र अचूक ढंग से पकड़ती है। यह डायरी अपने शहर और शहर के लोगों से मोहब्बत के कारण अपना मक़ाम बनाती है जिसमें अपने परिवार से अधिक किसान मज़दूर और साधारण जन की व्यथा अभिव्यक्त होती है। परिवेश पर आत्मीय और सूक्ष्म दृष्टि ने कृति को विश्वसनीय ज़मीन दी है। प्रसंगों, चरित्रों और जीवन पर लिखते हुए, उन्होंने कुछ ऐसी काव्य पंक्तियों को भी डायरी का हिस्सा बनाया है, जो पाठक की कल्पना शक्ति को ऐसी स्पेस सौंपती है जहाँ से वह वर्णित कथा को अपने ढंग से आविष्कृत करते हुए मूल पाठ को समृद्ध कर सकता है। इस डायरी में पाठक अपना कुछ खोया, कुछ बिसरा दिया जीवन भी कदाचित् देख पायेंगे।
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