जनाब यह सुन्दर दुनिया एक दूसरे से नफ़रत, कुढ़न और बदले की कामना से बदरंग हो इससे पहले ही क्यों न इसके रंगों को सहेज लें। हम अपनी एक अलग पहचान का मिथ पैदा कर उसके लिए जान देने और जान लेने की चाहना को तजकर क्यों न एक-दूसरे को पहचानना, समझना, चाहना, सराहना सीखें। इस क़दर कि कोई खाई रहे ही न । एक-दूसरे में दुश्मन तलाशने की बजाय दोस्त को पहचाना जाए ।
....आपको यह जानना ज़रूरी है कि इस नौटंकी में खण्डित होकर जीने की सज़ा कितनी खूँख्वार और कितनी अमानवीय है। आपकी एक नकली सुन्दर दुनिया के वहम को तोड़ने के लिए एक ज़रूरी घुसपैठ करने की गुस्ताखी में ये नोट्स लिखे गये हैं। यक़ीन करिए कि जिस दिन औरतों के दिलोज़िगर से दैवीय तमग़ों के बिना जीने का खौफ़ उठने लगेगा उस दिन वे सहज इंसानी ज़िन्दगी जीने के आनन्द से प्यार करने लगेंगी। वे जान जाएँगी कि इंसान होने के लिए जो विकल्प उनके पास आपने छोड़ा था वह था तो पतनशीलता का, पर ऊपर उठने के लिए यह तथाकथित गिरना ज़रूरी था ।
- 'नोट्स' की चन्द सतरें
नीलिमा चौहान (Neelima Chauhan )
नीलिमा चौहान
नीलिमा पेशे से शिक्षिका हैं और फ़िलवक़्त दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज (सान्ध्य) में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं। वे एक माँ, बेटी, पत्नी, दोस्त और लेखिका जैसी बेह