नूपुर-जमुना-बूबू के पारस्परिक पत्रों के आदान-प्रदान के ज़रिये ‘दो औरतों के पत्र' नामक यह पत्र-उपन्यास रचा-गढ़ा गया है। मयमनसिंह के ब्राह्मपल्ली से ले कर ढाका के शान्तिबाग़ तक, नयी दिल्ली के पहाड़गंज से ले कर कश्मीर के श्रीनगर तक, इन पत्रों का भूगोल विस्तृत है! गर्भवती जमुना की, अपनी चारों तरफ़ अनन्त घृणा के बीच, नूपुर की ज़ुबानी प्यार के दो बोल सुनने की अदम्य चाह और आन्तरिक गुहार के साथ इस उपन्यास की परिसमाप्ति होती है।