अन्तर्द्वन्दों के पार - यह एक ऐसी रचना है जिसके सृजन में श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन के साहित्यिक शैली-शिल्प ने नये आयाम उद्घाटित किये हैं। तीर्थंकर आदिनाथ द्वारा समाज संरचना की पृष्ठभूमि, उनके पुत्र भरत और बाहुबली के जीवन के मानवीय रूपों एवं उनके मनोजगत के अन्तर्द्वन्द्वों का मार्मिक चित्रण; आत्मोपलब्धि का रोमांच, चाणक्य, सम्राट चन्द्रगुप्त और श्रुतकेवली भद्रबाहु के इतिहास की प्रस्तुति में उपन्यास का आकर्षण श्रवणबेलगोल में परम-पराक्रमी सेनापति चामुण्डराय द्वारा बाहुबली की 57 फुट ऊँची विशाल प्रतिमा की स्थापना का विस्मयकारी आख्यान, विभिन्न लिपियों में उत्कीर्ण सैकड़ों शिलालेखों की विषयवस्तु का रुचिकर संवादों में विश्लेषण; श्रवणबेलगोल की तीर्थयात्रा को सार्थक बनाने वाले वन्दना स्थलों और कलावैभव का परिचय–सब कुछ दीप्तिमान मणियों की तरह इस कृति के कण्ठहार में सँजो दिया गया है। इस कृति के आधार पर एक फ़िल्म भी निर्मित हुई है। श्रवणबेलगोल में विश्ववन्द्य गोम्मटेश्वर बाहुबली मूर्ति के 1993 में आयोजित महामस्तकाभिषेक महोत्सव के शुभ अवसर पर प्रस्तुत कृति के नये संस्करण के रूप में भारतीय ज्ञानपीठ की यह विनम्र श्रद्धांजलि!
Log In To Add/edit Rating