‘मरीचिका' डॉ. वासिरेड्डी सीतादेवी का बहुचर्चित उपन्यास है, जो 20वीं सदी के सातवें दशक में प्रकाशित तेलुगु की कथाकृतियों में अग्रणी माना जाता है। इसके प्रकाशन के चार वर्ष बाद आन्ध्र प्रदेश सरकार ने यह घोषित करते हुए कि 'यह उपन्यास युवा पीढ़ी को पथ भ्रष्ट कर उन्हें नक्सलवाद की तरफ़ जाने की प्रेरणा देता है,' इस उपन्यास को ज़ब्त कर लिया था । पाठकों, लेखकों, पत्र-पत्रिकाओं और वकीलों के लगातार प्रतिवाद करने और आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश को हटाने का निर्णय लेने पर इसका पुनः मुद्रण आरम्भ हुआ। अब तक तेलुगु में इस उपन्यास के दस संस्करण निकल चुके हैं।
'मरीचिका' की दूसरी आवृत्ति पर लेखिका ने लिखा था, 'फ़ासिस्ट ताकतों का पाशविक धावा क्या था, साहित्य के अध्येता जानते ही हैं। उस वीभत्स दृश्य को पिकासो ने अपने चिरस्मरणीय चित्र में चित्रित किया। तमाम विध्वंस को सूचित करने वाले उस चित्र में एक दिया निश्चल प्रकाशमान दिखाई देता है। वह प्रकाश ही भावी पीढ़ियों का क्रान्ति-पथ है। युगों-युगों से मानव जिस सत्य का अन्वेषण कर रहा है उसकी मशाल । उस रोशनी में ही साहित्यकार जनहित साहित्य का सृजन करता है।.... मेरा पक्का विश्वास है कि मरीचिका की प्रमुख चरित्र ज्योति हमारे बीच सजीव है। देहातों में गरीब और ग्रामीण मज़दूरों के बीच नवचेतना जगाते हुए और क्रान्ति का बिगुल बजाते हुए यह ज्योति कहीं-न-कहीं और कभी-न-कभी मुझे दिखेगी, यह मेरा भरोसा है।'
यही भरोसा हमें भी है और इसीलिए इस उपन्यास का हिन्दी अनुवाद पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है। - प्रकाशक
डॉ. विजयराघव रेड्डी (Dr. Vijayraghav Reddy)
डॉ. विजयराघव रेड्डी एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसने हिन्दी शिक्षण और हिन्दी विश्लेषण को एक नयी दिशा दी है। आपने केन्द्रीय हिन्दी संस्थान को अपने जीवन के 40 वर्ष अर्पित किये। 1958 में 'हिन्दी शिक्षण प
डॉ. एम. लक्ष्मीकान्तम का जन्म 1955 को पुणे में हुआ । हिन्दी प्राध्यापिका, दि मदर्स डिग्री कॉलेज फ़ॉर वुमेन, विद्यानगर, हैदराबाद में रहीं। कुछ कहानियों और कुछ कविताओं का अनुवाद तेलुगु से हिन्दी म
वासिरेड्डी सीता देवी का जन्म 15 दिसम्बर, 1932 को गुरु जिले के बोलु गाँव के एक कृषक परिवार में हुआ। दस वर्ष की उम्र में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद गाँव ही की एक स्वतन्त्रता संग्राम कार्यकर्ता