Vasireddy Seeta Devi
वासिरेड्डी सीता देवी का जन्म 15 दिसम्बर, 1932 को गुरु जिले के बोलु गाँव के एक कृषक परिवार में हुआ। दस वर्ष की उम्र में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद गाँव ही की एक स्वतन्त्रता संग्राम कार्यकर्ता द्वारा संचालित हिन्दी विद्यालय में हिन्दी सीखी। कुछ समय बाद वे मद्रास चली गयीं और उन्होंने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा में हिन्दी की उच्च शिक्षा प्राप्त की। मद्रास में रहते हुए ही हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की 'साहित्य रत्न' परीक्षा पास की और उसके आधार पर स्वाध्याय से नागपुर की बी.ए. परीक्षा में उत्तीर्ण हुईं और बाद में एम.ए. में भी। शिक्षा पूरी करने के बाद आन्ध्र प्रदेश सरकार की सेवा में प्रवेश कर, जवाहर बाल भवन के निदेशक पद से सेवा-निवृत्त हुई।
1950 में लिखी उनकी पहली कहानी 'जीवितम अंटे...' (ज़िन्दगी माने...) 'किन्नेरा' नामक मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई। अपनी इस कहानी के माध्यम से ही उन्होंने सामाजिक समस्याओं को ले कर कई सवाल उठाये। आन्ध्र प्रदेश शासन की मासिक पत्रिका 'आन्ध्र प्रदेश' के लिए उसके सम्पादक के आमन्त्रण पर सीता देवी ने 'अडविमल्ले' (जंगली चमेली) उपन्यास लिखा जो उनका प्रथम उपन्यास है। उनके दूसरे उपन्यास 'समता' ने, जो 1968 में प्रकाशित सर्वत्र हलचल मचायी। हुआ, यह उपन्यास 1972 में आन्ध्र प्रदेश साहित्य अकादमी से पुरस्कृत भी हुआ । इनके अन्य उपन्यास 'वैतरणी' और 'मट्टिमनिषि' (माटी का मानव) हैं। 'मट्टिमनिषि' का अनुवाद नेशनल बुक ट्रस्ट ने चौदह भाषाओं में किया है।
आन्ध्र प्रदेश साहित्य अकादमी ने सीता देवी को पाँच बार पुरस्कृत किया। तेलुगु विश्वविद्यालय ने आपके मौलिक उपन्यासों तथा अनूदित कृतियों पर पुरस्कृत किया। प्रदेश के श्रीकृष्णदेवराय विश्वविद्यालय, अनन्तपुर एवं श्रीपद्यावती महिला विश्वविद्यालय, तिरुपति ने आपको मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ दे कर सम्मानित किया। इसके अलावा सीतादेवी लोकनायक पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी हैं।