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Nibandhon Ki Duniya : Jainendra Kumar

Hardbound
Hindi
9788181435818
1st
2007
160
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₹250.00

जैनेन्द्र कुमार - निबन्धों की दुनिया –

ऐसे निबन्धों में कहानीकार जैनेन्द्र पाठक का हाथ पकड़कर जिस यात्रा पर निकलता है उसमें कुछ दूर जाकर उसे चिन्तक जैनेन्द्र को पकड़ा देता है और ख़ुद एक तरफ़ हो जाता है। उनके निबन्धों में कहानीकार और विचारक जैनेन्द्र को यह आवाजाही बराबर बनी रहती है। इस कौशल का सबसे प्रभावी रूप उनके निबन्ध 'जड़ की बात' में दिखाई पड़ता है। बात इस दृश्य के वर्णन से शुरू होती है कि एक रोज़ सड़क के किनारे धूप में एक आदमी पड़ा है, जो हड्डियों का ढाँचा रह गया है और मिनटों का मेहमान है। चलती सड़क पर आते जाते लोग उसकी तरफ़ देखते और बढ़ जाते हैं। उसी सड़क पर एक मोटर चलते-चलते रुकती है। उसमें से उतरकर दो आदमी पीछे की ओर जाते हैं जहाँ उन्हें एक रुपया सड़क पर पड़ा मिलता है। इस रुपए को उन्होंने शायद चलती मोटर से देखा था। वे उसी के लिए मोटर से उतरे थे।

कहने का यह शुरुआती अन्दाज़ कहानीकार का है। पर इस वास्तविक या कल्पित दृश्य पर टिप्पणी बौद्धिक की है: "आदमी मरने के लिए आदमी की ओर से छुट्टी पा गया है। कारण, पैसे की क़ीमत है। आदमी की क़ीमत नहीं है।" यहीं से सूत्र निबन्धकार के हाथ में आ जाता है क्योंकि वह जानना चाहता है कि "यह अनर्थ कैसे होने में आया?" इस प्रश्न के घेरे में जवाबदेही के लिए व्यवस्था, शासन, समूचा तन्त्र, वे सब आ जाते हैं जो समाज में असमानता के लिए ज़िम्मेदार हैं। जिनके कारण ऐसे दृश्यों की सम्भावना बनती है कि कोई मनुष्य भुखमरी और उपेक्षा से सड़क के किनारे मरने के लिए विवश हो। इसी से व्यवस्था के विरुद्ध घृणा की त्रासकारी शक्तियाँ संघटित होकर मानो क्रान्ति के लिए इकट्ठा होती हैं क्योंकि सत्ता प्रभुता की ही नहीं त्रास की भी होती है।

निबन्धों में जैनेन्द्र का यह अन्दाज़ बराबर बना रहा है।

निर्मला जैन (Nirmala Jain)

डॉ. निर्मला जैन - जन्म : दिल्ली, 1932।शिक्षा : एम. ए., पीएच.डी., डी.लिट्., दिल्ली विश्वविद्यालय।अध्यापन : 1956 से 1970, स्थानीय लेडी श्रीराम कालेज में हिन्दी विभागाध्यक्ष।1970-81, दिल्ली विश्वविद्यालय, ( दक्षिण प

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जैनेन्द्र कुमार (Jainendra Kumar)

जैनेन्द्र कुमारहिन्दी के विराट आकाश में जैनेन्द्र कुमार का रचनात्मक आलोक तेजपुंज के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। उन्होंने प्रेमचन्द के समय में ही समानान्तर कथा-परम्परा का प्रखर प्रस्था

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