डॉ. रामविलास शर्मा - निबन्धों की दुनिया -
हिन्दी आलोचना में डॉ. रामविलास शर्मा का योगदान जितना प्रभूत और विस्मयकर है, उनकी स्थापनाएँ उतनी ही विवादास्पद हैं। यह रामविलास शर्मा का आत्मबल था कि उन्होंने साहित्य और विचार की किसी भी धारा के साथ समझौता नहीं किया और सम्पूर्ण मौलिकता के साथ विवेचन और विश्लेषण में लगे रहे। इसीलिए रामविलास शर्मा के निबन्ध बहुत ध्यान से पढ़े जाने की माँग करते हैं। उनकी दर्जनों पुस्तकों का अवगाहन करते हुए रामेश्वर राय ने विशद विवेक और बेहद सावधानी से ऐसे निबन्धों का चयन किया है जो रामविलास जी की आलोचना दृष्टि का प्रतिनिधित्व तो करते ही हैं, हिन्दी साहित्य के प्रमुख कृतिकारों के भावलोक के विभिन्न पहलुओं को नये परिप्रेक्ष्य में समझने के नये औज़ार भी प्रस्तुत करते हैं। इन निबन्धों में कालिदास से ले कर मुक्तिबोध और शमशेर तक का गहरा विवेचन है। डॉ. रामविलास शर्मा प्रतिबद्ध मार्क्सवादी थे और उन्होंने साहित्य की समस्याओं पर इसी दृष्टि से विचार किया है, पर जातीय संस्कृति और जातीय परम्पराओं की कीमत पर नहीं। इस प्रक्रिया में वे मार्क्सवाद का अपना संस्करण भी पेश करते हैं, जो अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण और विचारणीय है। भारतेन्दु, प्रेमचन्द और निराला रामविलास जी के प्रिय रचनाकार हैं, क्योंकि ये तीनों ही जनता के लेखक थे। इन तीन लेखकों के विवेचन के माध्यम से ही डॉ. रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि का विकास हुआ। इस संकलन में 'चाँद' के अक्टूबर 1984 अंक में प्रकाशित रामविलास जी का पहला प्रकाशित लेख भी, जो निराला की कविता पर है, शामिल है। रामविलास शर्मा के इन निबन्धों को उनकी अनूठी भाषा-शैली और आक्रामक तेवर के लिए, लम्बे समय तक याद किया जायेगा।
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