Jainendra Kumar
जैनेन्द्र कुमार
हिन्दी के विराट आकाश में जैनेन्द्र कुमार का रचनात्मक आलोक तेजपुंज के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। उन्होंने प्रेमचन्द के समय में ही समानान्तर कथा-परम्परा का प्रखर प्रस्थान निर्मित किया। अभिव्यक्ति की अनेक इकाइयों के प्रचलित स्वरूप में मौलिक परिवर्तन करते हुए जैनेन्द्र कुमार ने कथ्य, विचार, संवेदना व संरचना के नवीन पथ प्रशस्त किए। परतन्त्रता और जड़ता के अनेक सामायिक व सनातन प्रश्नों से संवाद करते हुए उन्होंने उपन्यास, कहानी, निबन्ध, संस्मरण, ललित निबन्ध और चिन्तनपरक लेखन में युगान्तर किया। वस्तुत: जैनेन्द्र कुमार स्वयं एक कालजयी शब्द-साधना के प्रतीक बन चुके हैं। एक गूढ़ अर्थ में उनका साहित्य व्यक्ति व समाज की नयी नैतिकता का उपनिषद है।