Stri-Vimarsh Ka Lokpaksh

Anamika Author
Hardbound
Hindi
9789350721469
3rd
2023
240
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स्त्री-विमर्श पर अलगाववाद का ठप्पा नहीं लगाया जा सकता । स्त्री समाज एक ऐसा समाज है जो वर्ग, नस्ल, राष्ट्र आदि संकुचित सीमाओं के पार जाता है और जहाँ कहीं दमन है-चाहे जिस वर्ग, जिस नस्ल, जिस आयु, जिस जाति की स्त्री त्रस्त है-उसको अंकवार लेता है। बूढ़े-बच्चे-अपंग-विस्थापित और अल्पसंख्यक भी मुख्यतः स्त्री ही हैं- यह मानता है। 'लंगड़ो चलै मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई' की पहली ईश-निरपेक्ष व्याख्या है यह, अपने ढंग का पहला अहिंसात्मक आन्दोलन जिसने दिलों में थोड़ी जगह तो बनायी ही है। 'जागो मोहन प्यारे' भाव में राग-भैरवी सुनाते हुए औरतें हमेशा जगाती रही हैं, जगाने का काम दुरूह तो होता है-नींद के गरम, गुदगुदे सपने से माँ भी बाहर खींचती है तो उसको दस बातें सुननी होती हैं। कोई बात नहीं। बहुत सुना है। कुछ और सुन लेंगे। घड़ी आपकी पहुँच से दूर चली गयी है! अलार्म बज रहा है। उठिए नहीं तो बस छूट जाएगी। हरिऔध से शब्द उधार लेकर कहूँ क्या-

“उठो तात, अब आँखें खोलो। पानी लायी हूँ, मुँह धोलो।"

܀܀܀

1995 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानव विकास प्रतिवेदन जारी किया, उसमें महिलाओं के अदृश्य, अवचेतन, छिपे हुए काम का मौद्रिक मूल्यांकन करके यह बताया गया है कि उनकी वार्षिक क़ीमत 110 खरब अमरीकी डॉलर की होती है। सीधे शब्दों में कहें तो पूरी अर्थव्यवस्था में वह आधे से भी अधिक का योगदान देती है।... अर्थव्यवस्था इतनी कमज़ोर नहीं है कि खाना ख़रीदा न जा सके, न ज़मीन इतनी बंजर ... भूखा रखना एक राजनीति भी है-घर में और घर के बाहर भी। यदि भरपेट भोजन मिला तो सम्भव है, मन और मस्तिष्क स्वस्थ होकर अपनी सामाजिक स्थिति पर विचार करें। जिसे समाजविद् सचिन जैन 'समता और क्षमता' का प्रश्न कहते हैं-वह भी उठ खड़ा हो जाएगा।

सरकारी ऋणों के आवंटन में भी ख़ासा लिंग-भेद है। कृषि, बागवानी, ट्रैक्टर या इस तरह की ठोस ज़रूरतों का पूरा सौ प्रतिशत पुरुषों के खाते में जाता है, औरतों को सहायता मिलती है अचार, बड़ी, पापड़ या सिलाई-कढ़ाई के काम के लिए। सिर्फ़ मध्य प्रदेश में महिलाओं ने ऐसे 2700 लाख रुपये इकट्टा किए हैं पर एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है जहाँ उन्हें खेत का अधिकार या निर्माण कार्य का ठेका मिला हो।

औरतों के लिए सामाजिक सुरक्षा के मायने भी उसके निराश्रित या विकलांग होने तक सीमित हैं, और अगर उसे 150 रु० प्रतिमाह की पेंशन भी मिलती है तो वह इसकी हक़दार नहीं रह जाती।

अनामिका (Anamika )

साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा अन्य कई राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित अनामिका का जन्म 17 अगस्त, 1961 को मुजफ़्फ़रपुर, बिहार में हुआ। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी की प

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