ग़ालिब -
‘पूछते हैं वो कि ग़ालिब कौन है
कोई बतलाओ कि हम बतलाएँ क्या?’
किसी के लिए भी ग़ालिब का व्यक्तित्व और कृतित्व समझ लेना, समझा देना आसाँ नहीं है। यौवन की तरंगों का यह रंगीन शाइर बाहर से जितना मोहक है, भीतर से उतना ही जटिल और विविध भी। ग़ालिब का काव्य-लोक सामुद्रिक संसार की तरह उलझा, विचित्र और खूबसूरत है- कहीं भावनाएँ शीशे की तरह पारदर्शी और कहीं कल्पनाएँ आँख पर उठ आयी जल की उज्ज्वल परतों की तरह पवित्र एवं पाठक को डबडबा देनेवालीं। ग़ालिब के बारे में सबसे क़ीमती बात निःसंकोच यह कही जा सकती है कि वो अपने जीवन-दर्शन में आधुनिक और अधुनातन खूबियाँ समाविष्ट किये हुए हैं और इसीलिए आज भी महान हैं, आज भी पहले से अधिक लोकप्रिय । रामनाथ सुमन ने प्रस्तुत ग्रन्थ में बस किया क्या है कि बहुत अधिक लोकप्रिय इस महाकवि की रहस्य में छपी ऊँचाइयों को अपनी पैनी प्रतिभा से पूरी तौर पर अफशाँ कर दिया है-बचा शायद बहुत कम होगा, पाठक स्वयं देखेंगे। प्रस्तुत है ग़ालिब का यह नया संस्करण ।
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