संगीत समयसार -
जैनाचार्य पार्श्वदेव (13वीं शती ई.) कृत संस्कृत का यह प्राचीन ग्रन्थ भारतीय संगीतशास्त्र के इतिहास की एक अचर्चित किन्तु महत्त्वपूर्ण कड़ी है। 'संगीत समयसार' इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन युग में जैन आचार्य आध्यात्मिक तत्त्व चिन्तन के साथ-साथ आयुर्वेद, ज्योतिष एवं संगीत जैसी विद्याओं में भी पारंगत होते थे। उन्होंने इन विषयों का गहराई से चिन्तन-मनन करने के उपरान्त मौलिक विश्लेषण भी किया है। आचार्य पार्श्वदेव ने प्रस्तुत ग्रन्थ के नौ अधिकरणों में संगीतशास्त्र के गूढ़ एवं सूक्ष्म सिद्धान्तों का विशद निरूपण किया है, जो न केवल संगीतशास्त्र के अपितु काव्यशास्त्र एवं नाट्यशास्त्र के जिज्ञासुओं के लिए भी अत्यन्त उपादेय हैं।
ग्रन्थ के सम्पादन एवं प्रामाणिक अनुवाद में आचार्य बृहस्पति ने अथक परिश्रम किया है। वे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान तो थे ही, संगीतशास्त्र में भी उनकी गहरी पैठ थी। 'संगीत समयसार' में उन्होंने आचार्य पार्श्वदेव के गूढ़ भावों को हिन्दी अनुवाद के माध्यम से बहुत ही स्पष्ट ढंग से प्रस्तुत किया है।
इस कृति के प्रकाशन से संगीतशास्त्र में अभिरुचि रखने वाले अध्येता एवं शोधकर्ता संगीत के सन्दर्भ में आचार्य पार्श्वदेव के समन्वयवादी दृष्टिकोण से भी लाभान्वित होंगे। ज्ञानपीठ की ओर से समर्पित है इस महान ग्रन्थ का नया संस्करण नयी साज-सज्जा के साथ।
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