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Atmanepad

Paperback
Hindi
8126309385
1st
2003
194
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₹65.00

आत्मनेपद

'आत्मनेपद' में, जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट है, 'अज्ञेय' ने अपनी ही कृतियों के बारे में अपने विचार प्रकट किये हैं—कृतियों के ही नहीं, कृतिकार के रूप में स्वयं अपने बारे में। अज्ञेय की कृतियाँ भी, उनके विचार भी निरन्तर विवाद का विषय रहे हैं। सम्भवतः यह पुस्तक भी विवादास्पद रही हो। पर इसमें न तो आत्म-प्रशंसा है, न आत्म-विज्ञापन; जो आत्म-स्पष्टीकरण इसमें है उसका उद्देश्य भी साहित्य, कला अथवा जीवन के उन मूल्यों का निरूपण करना और उन पर बल देना है जिन्हें लेखक मानता है और जिन्हें वह व्यापक रूप से प्रतिष्ठित देखना चाहता है। अज्ञेय ने ख़ुद इस पुस्तक के निवेदन में एक जगह लिखा है—'अपने' बारे में होकर भी यह पुस्तक अपने में डूबी हुई नहीं है—कम-से-कम इसके लेखक की 'कृतियों' से अधिक नहीं!'

अज्ञेय की विशेषता है उनकी सुलझी हुई विचार परम्परा, वैज्ञानिक तर्क पद्धति और सर्वथा समीचीन युक्ति युक्त भाषा-शैली।

अज्ञेय के व्यक्तित्व और कृतित्व को समझने के लिए 'आत्मनेपद' उपयोगी ही नहीं, अनिवार्य है; साथ ही समकालीन साहित्यकार की स्थितियों, समस्याओं और सम्भावनाओं पर उससे जो प्रकाश पड़ता है वह हिन्दी पाठक के लिए एक ज़रूरी जानकारी है। इस पुस्तक का अद्यतन संस्करण प्रकाशित करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ प्रसन्नता का अनुभव करता है।




'अज्ञेय' पर उनके समकालीनों के अभिमत

'हिन्दी साहित्य में आज जो मुट्ठीभर शक्तियाँ जागरूक और विकासमान हैं, अज्ञेय उनमें महत्त्वपूर्ण हैं। उनका व्यक्तित्व गम्भीर और रहस्यपूर्ण है। उनको पहचानना कठिन है।... सर्वतोमुखी प्रतिभा से सम्पन्न यह व्यक्तित्व प्रकाशमान पुच्छल तारे के समान हिन्दी के आकाश में उदित हुआ...।'
— प्रकाशचन्द्र गुप्त

'अतिशय आत्मकेन्द्रित और अहंप्रमुख कलाकार.... अज्ञेय जी की ये कृतियाँ... व्यक्तिवादी उपन्यास ही कहला सकती हैं।'
— नन्ददुलारे वाजपेयी

'उनका व्यक्ति अपना पृथक् अस्तित्व रखकर भी सामूहिकता को पुष्ट करनेवाला है, क्योंकि उसका लक्ष्य भी लोक-कल्याण है।'
— विश्वम्भर 'मानव' '

अज्ञेय का 'शेखर: एक जीवनी', 'गोदान' के बाद का सबसे महत्त्वपूर्ण और कलात्मक उपन्यास है।'
— शिवदान सिंह चौहान

'नदी के द्वीप' अभी पढ़ चुका हूँ। ...उसमें बड़ी बारीक़ी है, बड़ी ज्ञानवत्ता। और भी बड़ी-बड़ी दक्षताएँ होंगी...लेकिन मैं क्या सोचूँ...सोचता हूँ कि पढ़ते हुए कहीं मैं भीगा क्यों नहीं?
'— जैनेन्द्रकुमार '

मैं भीगा और खूब भीगा...'
— भगवतशरण उपाध्याय

सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Agyeya')

सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (7 मार्च 1911-4 अप्रैल 1987) -मानव मुक्ति एवं स्वाधीन चिन्तन के अग्रणी कवि-कथाकार-आलोचक-सम्पादक ।कुशीनगर, देवरिया (उ.प्र.) में एक पुरातत्त्व उत्खनन शिविर में ज

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