लालित्य तत्त्व
आचार्य द्विवेदी ने 'लालित्य-तत्त्व' के माध्यम से सौन्दर्यबोध-तत्त्व पर विस्तृत विचार किया है। आचार्य द्विवेदी ने चार तत्त्वों के आधार पर अपने 'लालित्य-तत्त्व' का ढाँचा तैयार किया है। पहला मानव तत्त्व है जिसके अन्तर्गत उन्होंने माना है कि 'मानव-चित्त एक है। समष्टि-मानस में ही समान बोध के मान रहते हैं।' दूसरा लोक तत्त्व है। इसके अन्तर्गत उन्होंने नृत्य, चित्र और काव्य के आदिम बोधों का अन्वेषण किया है। तीसरा मिथक तत्त्व है जिसके अन्तर्गत उन्होंने मानवता के समान अनुभव, कला की एक भाषा, सहृदय के एकचित्त की प्रतिष्ठा की है। चौथा 'लालित्य-तत्त्व' है जिसके अन्तर्गत उन्होंने मनुष्य निर्मित सौन्दर्य की अन्वीक्षा की है। इस तरह वे क्रमशः मानव तत्त्व से लोक तत्त्व, मिथक तत्त्व और लालित्य-तत्त्व की ओर अग्रसर होते चल रहे हैं। एक ओर तो वे इन तत्त्वों को आधुनिक ज्ञान के आलोक में परखते हैं, तथा दूसरी ओर इन्हें पुरातनता और परम्परा से भी प्रमाणित करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि आचार्य द्विवेदी के तत्त्वान्वेषण की दिशा दुहरी है।
आधुनिक भारतीय सौन्दर्यबोध-शास्त्रियों में वे आनन्द कुमार स्वामी, कान्तिचन्द्र पाण्डेय और प्रवास जीवन चौधरी से भिन्न हैं क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम एक लालित्य सिद्धान्त की सर्वांगीण अन्विति के लगभग सारे उपादान ढूँढ़ निकाले हैं। किसी अन्य ने अभी तक ऐसा नहीं किया। उनके आधार-बिन्दु शिवशक्ति की विभक्ति, इच्छा शक्ति एवं क्रिया शक्ति का सामंजस्य, गति और स्थिति का द्वन्द्व, देश और काल का द्वन्द्व, जड़ और चेतन का संघर्ष आदि रहे हैं। आचार्य द्विवेदी का लालित्य-चिन्तन, आधुनिक बोध और यथार्थवादी समान दर्शन की सच्ची कसौटी बनेगा।
- (डॉ. रमेश कुंतल मेघ के निबन्ध 'आचार्य द्विवेदी की
दृष्टि में लालित्य-तत्त्व' से उद्धृत कुछ अंश)
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