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आधी औरत आधा ख़्वाब

कहानी
Paperback
Hindi
9789352291045
3
2023
136
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औरत... औरत... औरत... बुरी, अच्छी, बेवफा, बावफा, ऐसी, वैसी और ख़ुदा मालूम कैसी-कैसी। हर मुल्क और हर ज़माने में बड़े-बड़े चिन्तकों ने औरत के बारे में कोई न कोई राय ज़रूर कायम की है, कोई साहब उसके हुस्न पर ज़ोर दे रहे हैं तो कोई उसकी पारसाई और नेक सीरती पर मुसिर हैं, एक साहब का ख़याल है कि "ख़ुदा के बाद औरत का मर्तबा है" तो दूसरे साहब उसे "शैतान की ख़ाला" बनाने पर तुले हुए हैं। एक साहब फरमाते हैं “एक धोखेबाज़ मर्द से एक धोखेबाज़ औरत अधिक ख़तरनाक होती है।" जैसे कोई यह कहे कि काले मर्द से एक काली औरत अधिक काली होती है। कितनी शानदार बात कही है कि बस झूम उठने को जी चाहता है और अगर मैं खुद औरत न होती और उनकी बात ने मुझे बौखला न दिया होता तो कहने वाले का मुँह चूम लेती। मुसीबत तो यह है कि इन नामाकूल बातों ने सिट्टी गुम कर रखी है। और मज़े की बात तो यह है कि जितना मर्दो ने औरत को समझने का दावा किया है उतना औरतों ने मर्दो के सम्बन्ध में कभी ऐसी बात अपनी अक़ल से नहीं बनायी। सदियों से औरत के सर ऐसे ऊटपटाँग इल्ज़ाम थोपकर चिन्तक ऐसे बौखलाने की कोशिश करते आये हैं, या तो वह उसे आसमान पर चढ़ा देते हैं या उसे कीचड़ में पटक देते हैं। मगर दोस्त और साथी कहते शरमाते हैं। पुस्तक अंश

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