ये किताब जेपी आन्दोलन से निकले समकालीन बिहार के दो बड़े राजनीतिज्ञों की है, कैसे उनके मिलने और बिछड़ने से राज्य का सामाजिक समीकरण बदलता है और कैसे भारतीय जनता पार्टी हाशिए से सत्ता तक पहुँचती है। नीतीश कुमार उभयनिष्ठ तत्त्व बन जाते हैं जो उनके हिसाब से व्यावहारिक समाजवाद कहलाता है और राजनीतिक पण्डितों के हिसाब से अवसरवादिता का बेजोड़ नमूना । कहानी रेमिंगटन टाइपराइटर से आईटी की यात्रा भी है, बेली रोड से सभ्यता द्वार की भी है।सभी राजनीतिक सिद्धान्त कहानी की शक्ल में हैं। बहुतेरे दिलचस्प संस्मरण और राजनीतिक उद्भेदन भी हैं - नीतीश कुमार का नरेन्द्र मोदी से मोहभंग कैसे हुआ, कैसे रामविलास पासवान ने बिहार के मुख्यमन्त्री बनने का मौक़ा गँवा दिया और 2017 में ऐसा क्या हुआ था कि नीतीश ने लालू का साथ छोड़ दिया था और राबड़ी देवी कैसे किचन से कैबिनेट पहुँची थी। ये किताब तो बस बिहार की कही-अनकही कहानी का सिरा है, डोर तो आपके हाथ में है ।
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