सम्पूर्ण हितोपदेश -
हितोपदेश राजनीति एवं लोकव्यवहार सिखाने वाला अत्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थ है, जिसे पण्डित नारायण शर्मा ने धवलचन्द्र नामक किसी गुणी सेठ आग्रह पर लिखा था। हितोपदेश पंचतन्त्र का ही संशोधित एवं संक्षिप्त रूप है। पंचतन्त्र में पाँच अध्याय हैं, जबकि हितोपदेश चार अध्यायों में निबद्ध है। इस ग्रन्थ के चार अध्याय हैं-मित्रलाभ, सुहृदभेद, विग्रह तथा सन्धि। ये सभी अध्याय पंचतन्त्र की अपेक्षा अधिक सरल, स्पष्ट व सुरुचिपूर्ण हैं।
हितोपदेश में ज्ञान का वही भाण्डार उपलब्ध है, जो महाभारत, रामायण तथा मनुस्मृति आदि भारी-भरकम ग्रन्थों में मिलता है, जिसके कारण प्रस्तुत पुस्तक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी बन गयी है।
हितोपदेश का प्रचलन पंचतन्त्र से भी अधिक है और आज तो भारत के विभिन्न विद्यालयों में हितोपदेश को पाठ्यपुस्तक के रूप में पढ़ाया भी जा रहा है। ऐसी अनुपम पुस्तक का मूल संस्कृतसहित सरल हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है। हमें विश्वास है कि हिन्दी के पाठक इस विशिष्ट पुस्तक का अध्ययन करेंगे और इससे पर्याप्त लाभ उठायेंगे।
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