जहाँ से उजास मेरी प्रेरणाएँ -
राजी सेठ के पास चिन्तन, सृजन, दर्शन, अनुभवगम्यता और भाषा की ऐसी बौद्धिक सम्पदा है जो उन्हें समानधर्मा समकालीनों में पृथक पहचान देता है। अपने अध्ययन और विलम्बित रचनाकाल के आरम्भ से लेकर आजतक की अपनी उपलब्धि को वे अपने पूर्वजों, अग्रजों और प्रेरकों का प्रसाद मानती रही हैं। उनका यह व्यक्तित्व केन्द्रित अध्ययन एक प्रकार से 'कृती स्मर कृति स्मर' की नयी बानगी पेश करता है।
अपने गुरु और दर्शन-शास्त्र के प्रख्यात विद्वान डॉ. (नन्दकिशोर) देवराज के स्मरण के साथ ही वे जैनेन्द्र, अज्ञेय, नरेश मेहता, निराला, फ़िराक़ जैसी भारतीय प्रज्ञा की सृजनात्मक अभिव्यक्ति करने वाले व्यक्तित्वों के साथ ही अपने समवय समकालीनों को भी स्मरण करती हैं और स्वभावतः अपनी जिज्ञासाओं की सीध में उनके कृतित्व और व्यक्तित्व के बीच पुल तलाश करती हैं। ऐसे अनुभव मात्र सम्पर्क-जन्य ही नहीं होते, वे संस्कार, विचार और प्रज्ञा-जन्य भी होते हैं। यहाँ राजी का अनुभूत इन व्यक्तित्वों की सुन्दर, सुघढ़, विचार - काया में प्रत्यक्ष हुआ है। ये जीवनियाँ नहीं हैं, पर जीवन के किन्हीं पहलुओं का रेखांकन अवश्य हैं। उन्हें उकेरता राजी का ये ताज़गी भरा लेखन भी यहाँ स्मृतियों की एक सापेक्ष उपस्थिति की तरह उपस्थित है। इसे पढ़ते सहसा यह विश्वास होने लगता है कि स्मृतियाँ कभी लुप्त नहीं होतीं, बल्कि हमारे गहन में चली जाती हैं। यह गहनता ही राजी की हैं रचना की सामर्थ्य है जो उनकी कहानियों में संवेदन, और निबन्धों और लेखों में एक आविष्कृत गद्य-रूप में प्रकट होती है। गद्य की ऐसी भाव-विचार-सम्पृक्त मुद्राएँ प्रायः हिन्दी में कम ही दिखाई देती हैं। गद्य की इस पठनीयता में भाव-प्रवणता भी है प्रश्नाकुल उत्कंठा भी। ऐसा गद्य हमें आकर्षित ही नहीं आमन्त्रित भी करता है। प्रस्तुत पुस्तक में समाविष्ट इन सब व्यक्तित्वों की अनुगूँजें बिखरी पड़ी हैं। ये स्मृति और अनुभव के ऐसे कोलाज हैं जो पाठकों के मनोलोक की आलोकित और भावसमृद्ध करेंगे।
राजी सेठ विचार के किसी वादी-विवादी साम्राज्यवाद से परे भाषा और चिन्तन के लोकतन्त्र की लेखक हैं। वे शब्द को सृजनात्मक व्यक्तित्व देकर यह सिद्ध कर पाती हैं कि शब्द मात्र किसी भाषा का भाषिक रूप ही नहीं है। वह अपने अर्थ-सन्दर्भ में विचार, शिल्प में कला, संसर्ग में अनुभव और गुणवान सृजन की भाव-भूमि भी है। अपनी इन्हीं वैचारिक और रचनात्मक पार्श्वभूमि की विशेषताओं के कारण 'जहाँ से उजास' एक संस्मरणात्मक आलोचनात्मक गद्य-शैली का एक अपूर्व समागम बन पाया है। ऐसा गद्य लोक पाठकों के चिन्तन की राग-भूमि पर निश्चय ही नया उत्तेजन, नयी उजास का अहसास पैदा करेगा।
-रमेश दवे
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review