हवस है अब तो यही नक्दे-दिल तलक दीजे
शराबे-इश्क़ को खूब में बैठकर पीजे
भरा है दिल में बहुत शौक़ आह क्या कीजे
नज़ीर आज भी चल कर बुतों से मिल लीजे
फिर इशत्याक़ का आलम रहे न रहे।
★★★
नाज़ उठाने में जफ़ाएँ तो उठाएँ लेकिन
लुत्फ़ भी ऐसा उठाया है कि जी जाने है।
-नज़ीर
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हमने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या पाया है
जुज़ तेरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ
-फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
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