Habba Khatoon Aur Aranimaal Ke Geet-Gaan

Suresh Salil & Madhu Sharma Translator
Paperback
Hindi
9789350724446
1st
2015
76
If You are Pathak Manch Member ?

कश्मीरी कविता में प्रेमपरक भावधारा प्रवाहित करने का श्रेय हब्बा ख़ातून (1552-1592) को जाता है। उस प्रवाह को जारी रखने और आगे ले जाने का काम किया हब्बा से दो सौ साल बाद कवयित्री अरणिमाल (1738-1800 अनुमानित) ने। दोनों के समय और सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में अन्तर है, किन्तु प्रणय-जन्य विरह वेदना की उठान में सातत्य है । यथार्थ और भौतिक जीवन की विडम्बना और मृदुल भावनालोक के द्वन्द्व से उनके कंठ से फूटे गीत-गान मौखिक रूप में ही सदियों घाटियों- वादियों, केसर के खेतों, झील में तिरते सिकारों, यानी कश्मीरी सरज़मीं के जर्रे जर्रे में झंकृत होते रहे। कश्मीर की कोयलों के इन गीत-गानों ने न सिर्फ़ लोक संस्कृति को समृद्ध किया, बल्कि आधुनिक कश्मीरी कविता के विकास में भी इनका निर्णायक योगदान है। विडम्बना ही है, कि भारतीय काव्य - परम्परा की इन दो हार्दिक हस्तियों की स्वर - साधना से हिन्दी भाषा साहित्य अब तक अपरिचित रहा आया। सुपरिचित कवि-द्वय सुरेश सलिल और (स्व.) मधु शर्मा के अनुवाद में पहली बार हब्बा ख़ातून व अरणिमाल के अमर गीत हिन्दी में प्रस्तुत किये जा रहे हैं। इन अनुवादों में लय और गीति-तत्व को अक्षुण्ण रखने की भरसक कोशिश की गयी है ।

सुरेश सलिल (Suresh Salil)

सुरेश सलिलकवि, अनुवादक, गद्यकार ।प्रकाशित कृतियाँ : (कविता) करोड़ों किरनों की ज़िन्दगी का नाटक सा, भीगी हुई दीवार पर रोशनी, खुले में खड़े होकर, मेरा ठिकाना क्या पूछो हो, रंगतें, (अनुवाद) रोशनी की

show more details..

मधु शर्मा (Madhu Sharma)

मधु शर्माकवि, अनुवादक, समीक्षक ।प्रकाशित कृतियाँ : (कविता) इसी धरती पर है ये दुनिया, ये लहरें घेर लेती हैं, जहाँ रात गिरती है, खत्म नहीं होतीं यात्राएँ, धूप अभी भी, बीते बसंत की खुश्बू। (अनुवाद) पाब

show more details..

My Rating

Log In To Add/edit Rating

You Have To Buy The Product To Give A Review

All Ratings


No Ratings Yet

Related Books

E-mails (subscribers)

Learn About New Offers And Get More Deals By Joining Our Newsletter