गंगा स्नान करने चलोगे -
किसी रचनाकार का व्यक्तित्व किन तत्त्वों से मिलकर बनता है, व्यक्तिगत जीवन में किन संघर्षों से रचनाकार जूझता रहा है, जिनकी प्रत्यक्ष या परोक्ष छवियाँ अथवा उनकी छायाएँ उसकी रचनाओं के प्रिज़्म से छनकर आ रही हैं, शायद उनकी पहचान का एक आसान सुराग मिल सकता है अगर उस रचनाकर के जीवन संघर्षों के साक्षी लोगों का संस्मरण हाथ लग जाये। और सोने पर सुहागा अगर संस्मरणकार स्वयं सतर्क समीक्षक हो तो उसका लिखा भावुकता की गुंजाइश से बरी होगा ही। इस तरह सामाजिक और साहित्यिक व्यक्तित्वों के धारक उस मनुष्य को उसकी प्रस्थापनाओं के परिप्रेक्ष्य में भलीभाँति समझा जा सकता है।
विश्वनाथ त्रिपाठी अपनी अपूर्व सरस संस्मरण शैली के लिए विख्यात हैं। आलोचना और संस्मरण का कमाल कॉकटेल त्रिपाठी जी अपनी चर्चित पुस्तक 'नंगातलाई का गाँव' और 'व्योमकेश दरवेश' में आज़मा चुके हैं। अब यह पुस्तक 'गंगा स्नान करने चलोगे' उसी ख़ास शैली की श्रीवृद्धि है। इस पुस्तक में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, फ़िराक़ गोरखपुरी, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, डॉ. रामविलास शर्मा, त्रिलोचन, भीष्म साहनी, भैरवप्रसाद गुप्त, डॉ. नामवर सिंह, डॉ. भरतसिंह उपाध्याय के जीवन और रचनाओं को तो नये आलोक में पहचाना ही जा सकता है, साथ ही अनेक साथियों के सत्संग का साक्ष्य इस संसार को और भी विस्तृत कर रहा है।
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