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छोटे छोटे सुख - 'छोटे छोटे सुख' में संकलित निबन्ध एक संवेदनशील रचनाकार के उन तीव्र मानसिक संवेदनाघातों से उद्भूत हैं जो जीवन और जगत के प्रति उसकी गहरी और रचनात्मक सम्पृक्ति से जन्म लेते हैं। मिश्र जी के निबन्धों में व्यक्त होने वाले संवेदन या चिन्तन का महत्त्व इस बात में है कि वह उनके निजी अनुभवों का निचोड़ है। वह उनके व्यक्तित्व की निजता को लेकर प्रकट हुआ है। हर जगह अपनी रुचि-अरुचि, इच्छा अनिच्छा, स्वीकृति अस्वीकृति के साथ लेखक मौजूद मिल जायेगा। मिश्र जी के ललित निबन्ध अपने समय के साथ जुड़े प्ररूपणों, विषयों और संवेदनाओं की यात्रा करते हैं। वे चाहे किसी विषय पर लिखे गये हों, अपनी ज़मीन से जुड़ी हुई सोच और संवेदना के साथ चलते रहते हैं। गाँव से लेकर शहर तक की इस यात्रा में सामान्य जीवन की छवियाँ और प्रश्न लेखक को प्रभावित तो करते ही हैं, वहाँ के छोटे छोटे सुख ही उन्हें वास्तविक 'सुख' प्रतीत होते हैं। अपने गाँव की स्मृतियों, पर्व-त्यौहारों, ऋतुओं और आम जन के जीवन-व्यवहारों के बीच वे अपने को पाना चाहते है। जहाँ कहीं वे विविध प्रसंगों के चित्रण की प्रक्रिया में राष्ट्र और समाज के अनेक प्रश्नों से गुज़रते हैं तो उनकी प्रगतिशील दृष्टि सहज रूप में ही सड़े-गले मूल्यों का निषेध करती है और उनमें नये मनुष्य को प्रस्तावित करने वाले मूल्यों की पक्षधरता दिखाई देती है। एक वरिष्ठ लेखक के रोचक एवं प्रेरक निबन्धों का एक महत्त्वपूर्ण संकलन प्रस्तुत करते हुए ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है।
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