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Bana Rahe Banaras

Hardbound
Hindi
9788119014217
6th
2024
152
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बना रहे बनारस -
'तीन लोक से न्यारी' और मिथकीय विश्वास के अनुसार त्रिपुरारि के त्रिशूल पर बसी काशी नगरी का नाम चाहे जिस कारण से बनारस पड़ा हो, किन्तु इतना सुनिश्चित है कि यहाँ का जीवन रस अद्वितीय है। काल और कालातीत के साक्षी बनारस के जीवन सर्वस्व को विश्वनाथ मुखर्जी ने 'बना रहे बनारस' में जीवन्त किया है। बनारस के विषय में कही-सुनी जानेवाली उक्तियों में एक यह भी है, 'विश्वनाथ गंगा वटी, गान खान औ पान/ संन्यासी सीढ़ी वृषभ काशी की पहचान।' इस पहचान को लेखक ने कुछ ऐसे शब्दबद्ध किया है कि 'बतरस' में बनारस का आस्वाद उतर आया है। 'एक बूँद सहसा उछली' में यशस्वी साहित्यकार अज्ञेय ने ठीक ही लिखा है—'हर एक बतर का अपना एक स्वाद होता है।'
'बना रहे बनारस' एक नगर को केन्द्र बनाकर लिखा गया संस्कृति विमर्श है। भारतीय ज्ञानपीठ से इस पुस्तक का प्रथम संस्करण 1958 में प्रकाशित हुआ था। तत्कालीन बनारस और वर्तमान बनारस के बीच जाने कितना जल गंगा में प्रवाहित हो गया, किन्तु तत्त्वतः बनारस वही है जिसका अवलोकन लेखक विश्वनाथ मुखर्जी ने किया था। यही कारण है कि इतिहास, समाजशास्त्र और जीवनचर्या की ललित अभिव्यक्ति आज भी सहृदय प्रभावित करती है। 'बनारस दर्शन से भारत दर्शन हो जायेगा' पुस्तक का यह वाक्य अनेक अर्थों में स्वतःसिद्ध है। कहा जा सकता है कि यह शब्दयात्रा अन्ततः तीर्थयात्रा की अनुभूति में सम्पन्न होती है। प्रस्तुत है अत्यन्त पठनीय व प्रभावी पुस्तक का यह नये कलेवर में नयी साज-सज्जा के साथ 'पुनर्नवा' संस्करण।

विश्वनाथ मुखर्जी (Vishwanath Mukherji)

विश्वनाथ मुखर्जी 23 जनवरी, 1924 को काशी (वाराणसी) में जनमे विश्वनाथ मुखर्जी काशी की ही मिट्टी में पले-पुसे, बड़े हुए। बंगाली परिवार से होते हुए भी वे खाँटी बनारसी रहे। शक्ल-सूरत, पहनावा और बोली से उ

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