चिट्ठियों की दुनिया - मानव सभ्यता के विकास के साथ जैसे ही अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा के रूप में विकसित हुआ उसी समय से पत्र लिखने का प्रचलन प्रारम्भ हो गया। अपने निजत्व को किसी निकटस्थ को सौंपने के लिए सम्प्रेषण के साथ-साथ उसे यथास्थान पहुँचाने के उपाय भी आवश्यकतानुरूप खोज लिए गये होंगे। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से ही भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र और उनकी मण्डली के अन्य हिन्दी सेवियों के बीच होने वाला पत्राचार सामाजिक जागृति का प्रथम अभियान कहा जा सकता है। बाबू बालमुकुन्द गुप्त का 'शिवशम्भू का चिट्ठा' एक संकेत के रूप में भारतीय जन-मानस में अंग्रेज़ी शासन के प्रति प्रतिरोध की भावना जगानेवाला है। भारतेन्दु बाबू के मृत्यु वर्ष में ही प्रथम भारतीय राष्ट्रीय दल कांग्रेस की स्थापना हुई। जिन राष्ट्रीय नेताओं का इस दल ने नेतृत्व सँभाला उनमें राष्ट्रीय ख्याति के नेता गोपालकृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी और बाद में महात्मा गाँधी सभी ने पत्रों के माध्यम से राष्ट्रीय प्रश्नों और सामयिक मुद्दों पर निरन्तर पत्राचार किया। लगभग दो-ढाई हज़ार पत्रों में ऐसे पत्रों की पर्याप्त संख्या मौजूद है जिन्हें बीसवीं शताब्दी के महानतम लेखकों, कवियों, विचारकों, सम्पादकों और राजनीतिक आन्दोलन से जुड़ी विभूतियों ने लिखा है। इन पत्रों में प्रेमचन्द, निराला, पन्त, महादेवी, डॉ. रामकुमार वर्मा, श्री हरिवंश राय बच्चन, सम्पूर्णानन्द, गाँधी जी, और युग प्रवर्त्तक सम्पादकाचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के पत्र सुरक्षित हैं। शान्तिनिकेतन से जुड़े और दीर्घकाल तक कवीन्द्र रवीन्द्र का सानिध्य प्राप्त करते, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा बनारसी दास चतुर्वेदी के पत्रों की अच्छी-ख़ासी संख्या संग्रहालय के पास है। प्रथम कोटि के कवि अज्ञेय के मुक्तिबोध को लिखे पत्रों से संग्रहालय की सम्पन्नता का पता चलता है। जनकवि नागार्जुन, केदार बाबू, रामविलास शर्मा, और नामवर सिंह के पत्रों का भी अमिट भण्डार है। हिन्दी के दिग्गज कथाकारों यशपाल, अश्क और अमृतलाल नागर के पत्रों से कथा जगत् से जुड़े महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का दिग्दर्शन होता है। हमने अपनी ओर से भरसक प्रयास किया है कि इन पत्रों में से कुछ पत्र एक संकलन में संगृहीत करके प्रकाशित करें और आगे भी जो पत्रों का भण्डार हमें उपलब्ध होगा उसका भी यथा समय प्रकाशन जारी रखेंगे।
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