प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ - इतिहास का निर्माण मनुष्य ने किया है। मनुष्य को निर्माण-दिशा इतिहास ने दी। बात अटपटी लगेगी, पर उसमें है सच्चाई। किसी भी देश या जाति का इतिहास हो, किसी भी धर्म या समाज की परम्पराएँ हाँ, भीतर पैंठने चलें तो साक्षात्कार सब कहीं इस सच्चाई से होगा। वहाँ तो यह तथ्य और भी उजागर, मुखरित होता मिलेगा जहाँ सामाजिक जीवन के ताने-बाने में एकाधिक संस्कृतियाँ रची-पची हों। प्रस्तुत ग्रन्थ इस दृष्टि से देश के समूचे इतिहास का तो छवि-अंकन नहीं करता, न ही इसका अभीष्ट यह है कि विभिन्न सांस्कृतिक परम्पराओं ने सहजीवी रहते हुए और एक-दूसरे को प्रभावित करते हुए किस प्रकार यहाँ की समग्र सामाजिक इकाई की श्रीवृद्धि की इसे उद्घाटित करे। इसका तो उद्देश्य उन महाप्राण पुरुषों और महिलाओं से साक्षात्कार करा देना है जिनका कृतित्व इतिहास का धन बना है और उसकी रूपरेखाओं में समाया हुआ है। अवश्य ये प्राणवान ज्योतियाँ ईसा पूर्व 600 से ईसोत्तर 1947 तक अर्थात् तीर्थंकर महावीर से स्वतन्त्रता प्राप्ति तक के 2500 वर्ष के काल की हैं और अनिवार्य रूप से जैनधर्म और संस्कृति को प्रतीकित करती हैं। यह आवश्यक भी था इस तथ्य को सम्मुख लाने के लिए कि भारतीय समाज और संस्कृति के विकास और श्रीवर्द्धन में इन सबका कितना विपुल योगदान रहा है। कितने महत्त्व का है यह ग्रन्थ, कितनी उपयोगिता है इसकी, यह प्रत्यक्ष है। हिन्दी में इस विषय-भूमि की यह सर्वथा प्रामाणिक और पहली रचना है, जिसमें शोध की गरिमा और चरित्र-चित्रांकन की प्रेरणापूर्ण रोचकता, दोनों का समन्वय हुआ है। प्रत्येक जिज्ञासु मन, प्रत्येक विचारशील पाठक के लिए सर्वथा उपयोगी इस ग्रन्थ का नया संस्करण प्रस्तुत है।
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