उत्सव पुरुष : नरेश मेहता नरेश मेहता की कविता अद्वितीय है वैसे ही उनका व्यक्तित्व भी अनोखा था। ये ध्रुवान्तों में जीनेवाले व्यक्ति रहे हैं। एक तरफ़ वे क्रान्तिचेता रहे तो दूसरी वैष्णव सन्तों की संवेदना में जीते हुए अपना योगक्षेम धर्म निभाते रहे। वे घनघोर प्रेमपगी मानसिकता में भी जी सकते थे तो वे वैराग्य की अतियों तक भी पहुँच सकते थे। विद्यार्थी जीवन के कुछ वर्षों में वे फ़ौज में भर्ती भी हुए थे और बौद्ध भिक्षुक भी बन गये थे। निरन्तर अभावों में रहते हुए भी उनके भीतर एक मानसिक आभिजात्य था। उनकी निश्छल हँसी में उनकी निश्चिन्तता और बड़प्पन झलकता था। अपनी साधारणताओं में रहते हुए, साधारण लोगों के साथ उठते-बैठते हुए उन्होंने जिस तरह स्वयं को असाधारण बनाया, वह वाकई विस्मित करता है। चिन्तन, मनन और कर्म में वे विशुद्ध भारतीय थे; और यह भारतीयता ही उनके समकालीनों को बहुधा आतंकित करती थी। नरेश जी पूर्णतः साहित्यकार थे, अपनी वेशभूषा से लेकर जीवन-शैली तक में। मगर साहित्यकार होते हुए भी वे पूर्णतः पारिवारिक थे—वत्सल पुरुष। जिस तरह वे साहित्य के प्रति समर्पित थे, उसी तरह अपने घर-परिवार के प्रति भी। पत्नी और बच्चों के बिना तो जैसे वे कुछ सोच ही नहीं पाते थे। वे पूर्णतः सन्त-गृहस्थ थे। परिवार ही उनकी शक्ति थी, जिसके चलते वे बड़ी से बड़ी चुनौतियाँ झेल गये। दूसरी तरफ़ यह भी सत्य है कि अगर नरेश जी को महिमा मेहता जी का साथ न मिला होता तो उनका यह पूर्णकमल-सा विकास भी सम्भव न हुआ होता। सारी धूप अपने माथे पर लेकर महिमा जी ने योग्य सहधर्मिणी के नाते नरेश मेहता को जो छाँह प्रदान की, उसी में आश्रय लेकर नरेश जी अपना मनचाहा कर पाये, साहित्य की बँशी में सुमधुर स्वर फूँक सके, शिखरों पर चढ़ते हुए उन्हें वापस लौटने का ध्यान नहीं आया। महिमा जी द्वारा लिखी हुई यह पुस्तक नरेश मेहता पर संस्मरण ही नहीं है, एक श्रमबहुल ऊबड़-खाबड़ मार्ग की जिजीविषा-भरी सहयात्रा के साथ ही एक सृजनधर्मी व्यक्तित्व को समझने की कोशिश भी है। प्रामाणिक और तटस्थ कोशिश। महिमा जी का यह औदार्य और बड़प्पन है कि उन्होंने अपनी सारी आशाएँ-आकांक्षाएँ नरेश जी को सफल लेखक बनाने में विलीन कर दीं। फिर भी आश्चर्यजनक रूप से अपने व्यक्तित्व को बनाये रखा। चेहरे पर सौम्य मुसकान बनाये रखकर उन्होंने चिन्ताओं को नरेश जी के लिए चिन्तित होने की हद तक नहीं पहुँचने दिया। ख़ुद सफल लेखिका की क्षमता की अधिकारिणी होते हुए भी महिमा जी ने बहुत ज़रूरत पड़ने पर ही कुछ लिखा। उनके द्वारा लिखी नरेश जी की इस सुन्दर जीवनी से महिमा जी के लेखकीय व्यक्तित्व का भी पता चलता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रेमचन्द पर शिवरानी देवी की पुस्तक का जो महत्त्व है, वही महत्त्व नरेश जी पर महिमा जी की लिखी इस पुस्तक का है।
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