यह फ्रेंच लेखक, दार्शनिक और पत्रकार अल्बेयर कामू की साहित्यिक-सांस्कृतिक जीवनी है, जिसे नारीवादी कथाकार और विचारक प्रभा खेतान ने अपनी निजी श्रद्धांजलि के रूप में लिखा है। कामू को अकसर अस्तित्ववाद से जोड़ कर देखा जाता है, पर उनकी विचारधारा बहुत-से मायनों में अलग और अपनी थी। कामू गरीबी में पैदा हुए, कठिन परिस्थितियों में जिए, बीमारी, अभाव और अकेलेपन से हमेशा घिरे रहे और अन्त में ‘घृणा के बर्फीले तूफानों’ के बीच उनकी मृत्यु हुई। फिर भी उनका रचनात्मक अवदान सबसे अनोखा और मोहक है, क्योंकि वे व्यक्ति और मानवता, दोनों की ट्रेजेडी को समझते थे और उनकी संवेदना आम आदमी की पीड़ा और संघर्ष से जुड़ी रही। प्रभा खेतान के शब्दों में, ‘वास्तव में हृदय से वे ग्रीक थे, भूमध्यसागरीय सभ्यता से प्रभावित थे, इसीलिए हम उनमें वही आदिम आवेग और संवेदना पाते हैं जो स्थान और काल की सीमा से परे है।’
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