यह धारणा सही नहीं है कि एशिया में होने वाली गर्म गोश्त की तिज़ारत में यौन दासियों के ख़रीदार केवल विदेशी ग्राहक ही होते हैं। यह शोधपरक पुस्तक साबित कर देती है कि पश्चिम से आने वाले सेक्स पर्यटक इस घिनौनी तिज़ारत में उल्लेखनीय भूमिका ज़रूर निभाते हैं, पर असलियत यही कि एशिया के सेक्स बाज़ार में बिकाऊ माल के मुख्य ख़रीदार एशियायी पुरुष हैं, फिर यह गर्म गोश्त चाहे वयस्क यौन दासियों का हो या बाल-वेश्याओं का।
'यौन दासियाँ' के पृष्ठों पर दुनिया की सबसे ख़ामोश और उत्पीड़ित आवाज़ें दर्ज हैं। यह उन औरतों की हृदय विदारक दास्तान है जिन्हें उन्हीं मर्दों ने वेश्यावृत्ति के धँधे में धकेला जिन पर वे सबसे ज़्यादा यकीन करती थीं। यह उनके उस सफ़र की कहानी है जो उन्होंने अपने घरों से लेकर चकलाघरों के क़ैदखाने तक किया। बर्मा की गन्दी झोपड़पट्टियों से लेकर जापान के खुफ़िया लॉजिंग हाउसिज़ और मंहगे होटल रूमों तक बिखरी हुई इस मर्मबेधी कथा से पता चलता है कि औरत के जिस्म को गर्म गोश्त में बदल देने वाले इस व्यवसाय का रहस्य क्या है।
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अन्तिम पृष्ठ -
'यौन दासियाँ' की कहानी अपनी संवेदनशीलता और करुणा से एशियाई औरतों पर होने वाली यौन हिंसा का पर्दाफ़ाश कर देती है। वह उस समाज का पाखण्ड उजागर कर देती है जो मूल्यों और आदर्शों की दावेदारियों के पीछे इस सड़ाँध भरी हक़ीक़त को छिपाये रहता है।
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