प्रिय नीलकण्ठी - ललित निबन्ध हिन्दी में कम ही लोगों ने लिखे हैं और ऐसे लेखक तो और भी कम हैं जिन्होंने सारी युगीन चेतना को आत्मसात् करके अभिव्यक्ति की इस एक ही विधा को समृद्ध किया है। कुबेरनाथ राय ऐसे ही विरल रचनाकार हैं, जिनका नाम ललित निबन्धों के साथ अब कुछ ऐसा जुड़ गया है कि दोनों संज्ञाएँ एक-दूसरे की पूरक-सी लगने लगी हैं। और, यही कारण है कि प्रस्तुत निबन्ध-संग्रह विशिष्ट हो गया है। भारतीय जनजीवन के परम्परागत पैटर्न में जो रूपान्तरण आज हो रहा है उसकी 'समग्र अनुभूति' प्राप्त करने की चेष्टा ही 'प्रिया नीलकण्ठी' के निबन्धों की सृजन-प्रेरणा है। इस रूपान्तरण में ग्राम संस्कृति के सूखते रस-बोध का स्थान यन्त्र युग की बौद्धिकता लेती जा रही है, जिसने आज के व्यक्ति को अभिशप्त और निर्वासित जीवन जीने के लिए विवश किया है। यह सत्य है कि औद्योगिक संस्कृति के विकास के साथ-साथ बौद्धिकता का दायरा बढ़ता जायेगा, किन्तु ग्रामीण जीवन की उल्लास-साधना इतनी हेय और उपेक्षणीय नहीं कि इसे सूखने दिया जाये। अतः आधुनिक यन्त्रबोध से उत्पन्न 'निर्वासन' के भाव को जीवन की स्वीकारात्मक स्थितियों तक ले जाने के लिए एक नया 'सम्पाती' चाहिए, जो अपने पंख जल जाने पर भी निराश न हो और सत्य को स्वर्ण-मंजूषा में बन्द कर लाने के लिए प्रतिबद्ध रहे। अवश्य ही सहज-विदग्ध शैली में लिखे गये इन निबन्धों को पढ़कर आपको परितोष मिलेगा।
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