logo
  • स्टॉक ख़त्म

फिर बैतलवा डाल पर

निबंध
Hardbound
Hindi
8126304065
2nd
2000
152
If You are Pathak Manch Member ?

फिर बैतलवा डाल पर - हिन्दी में शहरी जीवन के चित्र तो बहुत-बहुत उकेरे ही गये हैं, गँवई जीवन के भी कम नहीं आये। प्रेमचन्द युग के बाद के गाँवों पर, जो उन पुरानों से कहीं अधिक उलझे हुए हैं, रोमान युक्त कथाएँ भी कितनी ही बाँधी गयी हैं। पर ऐसी कृतियाँ कम ही हैं, शायद नहीं ही हैं, जो ठेठ आज के गाँवों और वहाँ रहते जीते असंख्य प्राणियों के जीवन और उस जीवन के रंगों का एक्स-रे किया हुआ रूप उकेरती हों। ‘फिर बैतलवा डाल पर‘ की रचनाओं की यह विशेषता है, और इसी में इनका उपयोगिता मूल्य भी है। 'फिर बैतलवा डाल पर' की रचनाएँ ग्रामीण जीवन की हैं, पर अच्छा हो यदि आवश्यक समझकर इन्हें एक बार वे पढ़ें जो शहरी जीवन में जनमे और रहते आये हैं, और वे भी पढ़ें जिन पर जन-जीवन को रूप और दिशा देने का दायित्व है। प्रस्तुत है पुस्तक का नया संस्करण।

विवेकी राय (Viveki Rai)

show more details..

मेरा आंकलन

रेटिंग जोड़ने/संपादित करने के लिए लॉग इन करें

आपको एक समीक्षा देने के लिए उत्पाद खरीदना होगा

सभी रेटिंग


अभी तक कोई रेटिंग नहीं

संबंधित पुस्तकें