पगले मन के दस चेहरे - ज्ञानपीठ पुरस्कार से विभूषित कन्नड़ के महान लेखक डॉ. शिवराम कारन्त की 'पगले मन के दस चेहरे' एक ऐसे दुर्धर्ष संघर्षशील लेखक की आत्मकथा है जिसमें जीवन को चुनौती के रूप में लिया गया है। जीवन के अन्त तक जिनके मन में युवकोचित ओज और उत्साह रहा और जो नयी पीढ़ी के लिए एक प्रकाश स्तम्भ के समान रहे। सर्जनात्मक लेखन, सम्पादन-प्रकाशन, पत्रकारिता, मंच, संगीत-नृत्य, हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनके भीतर परिवर्तन की ज्वाला धधकती रहती थी। कहीं भी अन्याय या एकाधिकार की भावना दिखते ही उनका विद्रोही व्यक्तित्व मुखर हो उठता था। अपने अनगिनत पाठकों की दृष्टि में वे एक नायक रहे हैं– स्वाधीन, निष्कपट, निर्भय और अपने में पूर्ण; साथ ही विनयशील। ज्ञानपीठ पुरस्कार के अलावा उन्हें देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों ने मानद उपाधियाँ प्रदान की हैं। नयी पीढ़ी के लिए डॉ. कारन्त की यह आत्मकथा एक प्रकाश-स्तम्भ की तरह है। यह संघर्ष करना तो सिखाती ही है, सफलता का आत्मविश्वास भी पैदा करती है। प्रस्तुत है भारतीय साहित्य की एक उत्कृष्ट आत्मकथा के हिन्दी रूपान्तर का अद्यतन संस्करण।
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