Vishnubhatt Ki Aatmkatha

Hardbound
Hindi
9788181436369
2nd
2014
160
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1857 का विद्रोह उतना सीमित और संकुचित नहीं था, जैसा उसे अंग्रेजों द्वारा पेश किया गया। वह मात्र सिपाही * विद्रोह नहीं था। उसमें जनभागीदारी थी। केवल सिपाही विद्रोह होता तो 'रोटी-संदेश' कैसे फैलता। विद्रोहियों का कूट वाक्य 'सितारा गिर पड़ेगा' एक से दूसरी जगह कैसे पहुँचता । यह संदेश कि सब लोग अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हो जाएँ। संदेश का रास्ते के सभी गाँवों में वांछित असर होता । जिस गाँव रोटी पहुँचती, पाँच रोटियां बनाकर अगले गाँवों के लिए रवाना कर दी जातीं। एक तथ्य यह भी है कि रोटी एक रात में सवा तीन सौ किलोमीटर दूर के गाँव तक पहुँच जाती थी। अंग्रेजों से सभी त्रस्त और परेशान थे। सिपाही विद्रोह ने उन्हें एकजुट होने का मौका दे दिया। अंग्रेजों से आजादी की उम्मीद जगा दी। संभव है विद्रोह में शामिल विभिन्न समुदायों के कारण अलग-अलग रहे हों। लक्ष्य एक था। उसमें धर्म, अर्थव्यवस्था, खेती, समाज और रियासतदारी सब शामिल थी। अलगाव नहीं था बल्कि साझा सपना था। लोग जुड़ते चले गए।

1857 को सबसे पहले 'राष्ट्रीय विद्रोह' के रूप में कार्ल मार्क्स ने रखा। कहा, 'यह सैनिक बगावत नहीं, राष्ट्रीय विद्रोह है।' मार्क्स की यह टिप्पणी 28 जुलाई, 1857 को 'न्यूयार्क डेली ट्रिब्यून' में छपी। उसी साल उनके दो और लेख 1857 पर आए। ताजा विवरणों और आख्यानों से यह बात साफ हो जाती है, लेकिन भारत में तत्कालीन टिप्पणीकार इस पर चुप रह गए। शायद सावरकर ने अंग्रेजी दमन के भय से । भारत में इसे अपनी पुस्तक 'सत्तावन का स्वातंत्र्य समर' में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा, पचास साल बाद। उनकी किताब 1857 की स्वर्णजयंती पर 1907 में प्रकाशित हुई ।

विष्णुभट्ट उस विद्रोह को आम जनता की नज़र से देखते हैं। वह घटनाओं को रोज़नामचे की तरह प्रस्तुत करते हैं। कई बार अफवाहें और सुनी-सुनाई खबरें उसमें दाखिल हो जाती हैं, लेकिन इससे पुस्तक की गंभीरता और उसका महत्त्व कम नहीं होता। पूरी किताब से यह आभास कहीं नहीं होता कि आम लोग 1857 के विद्रोह में किसी मजबूरी के कारण शामिल हुए। बार-बार यही भान होता है कि जनता अंग्रेजों से डरती थी और उनसे नफरत भी करती थी। चाहती थी कि अंग्रेज भारत से चले जाएँ।

मधुकर उपाध्याय (Madhukar Upadhyaya)

मधुकर उपाध्याय मधुकर उपाध्याय का जन्म पहली सितम्बर 1956 को अयोध्या में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा और डिग्री वहीं से हासिल की।लगभग तीन दशक की सक्रिय पत्रकारिता के दौरान संस्कृत और उ

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