मुझे घर ले चलो -
तसलीमा नसरीन का जन्म 25 अगस्त, 19621 बांग्लादेश के मयमनसिंह में! डॉक्टर की डिग्री हासिल करने के बाद, सन् 1999 तक डॉक्टर के तौर पर सरकारी अस्पताल में नौकरी! सरकारी नौकरी में बने रहने के लिए, लिखना छोड़ना होगा- यह हुक्मनामा पाकर सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा।
अपने लेखन के लिए असाधारण लोकप्रियता अर्जित की और काफ़ी चर्चित रहीं। औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है- बेहद साफ़गोई से इस पर विचार करते हुए, धर्म औरत की राह में बाधक कैसे हो सकता है, इसके समर्थन में, बेबाक बयान दिया है। इस साहस के लिए वे सिर्फ़ गँवार जाहिल कट्टर धर्मवादियों के ही हमले की शिकार नहीं हुई, बल्कि समूची राष्ट्र-व्यवस्था और पुरुष वर्चस्व प्रधान समाज ने उनके ख़िलाफ़ जंग की घोषणा कर दी। देश के समस्त कट्टरवादियों ने तसलीमा को फाँसी देने की माँग करते हुए, आन्दोलन छेड़ दिया। यहाँ तक कि उनके सिर का मोल भी घोषित कर दिया। नतीजा यह हुआ कि उन्हें अपने प्रिय स्वदेश से निर्वासित होना पड़ा। उनके देश में आज भी उनके ख़िलाफ़ फ़तवा झूल रहा है; तसलीमा का ही नहीं बल्कि वाक स्वाधीनता के विरोधी असंख्य लोगों के द्वारा ठोंके गये मामले झूल रहे हैं! मानवता की हिमायत में, सत्य तथ्यों पर आधारित उपन्यास, 'लज्जा'; अपने शैशव की यादें दुहराता हुआ, 'मेरे बचपन के दिन'; किशोर और तरुणाई की यादों का बयान करता हुआ, 'उत्ताल हवा'; आत्मकथा का तीसरा और चौथा खण्ड 'द्विखंडित' और 'वे सब अँधेरे'-इन पाँचों पुस्तकों को बांग्लादेश सरकार ने निषिद्ध घोषित कर दिया है! पश्चिम बंगाल में विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों में दुश्मनी जाग सकती है, इस आशंका का वास्ता देकर और बाद में किसी एक विशेष सम्प्रदाय के धार्मिक मूल्यबोध पर आघात किया गया है, इसकी दुहाई देते हुए, उनकी आत्मकथा का तीसरा खण्ड-'द्विखंडित' पश्चिम बंगाल सरकार ने भी निषिद्ध कर दिया। पूरे एक वर्ष, नौ महीने, छब्बीस दिन तक निषिद्ध रहने के बाद, हाईकोर्ट की निर्णय के मुताबिक यह निषेध उठा लिया गया। दोनों बंगाल में इस खण्ड के ख़िलाफ़ (पश्चिम बंगाल में 'द्विखंडित' और बांग्लादेश में 'क') उनके समकालीन लेखकों द्वारा कुल इक्कीस करोड़ रुपये का मामला दायर किया गया है।