Na Medhaya

Hardbound
Hindi
9788126318667
2nd
2022
160
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न मेधया - विलायती प्रभाव में जनमी उन्नीसवीं सदी की भारतीय मानस-मनीषा के सन्दर्भ में श्री रामकृष्ण परमहंस की नैसर्गिक प्रतिभा की निजता को उजागर करती है प्रस्तुत कृति 'न मेधया'। वाचिक शिक्षा की निर्मिति और वाचिक शिक्षा-परम्परा के सिद्ध आचार्य श्री रामकृष्ण की विद्या का मूल्य मूर्धन्य आधुनिक बौद्धिकों की औपचारिक विद्या की तुलना में बहुत ऊँचा रहा है। जन-जन को आलोक-स्पर्श देनेवाली परमहंस की वाचिक शिक्षा के सामने आधुनिक औपचारिक शिक्षा का लोक-मूल्य बहुत छोटा था। इस मार्मिक सत्य के सटीक बोध का ही परिणाम था कि अपने समय के शीर्ष बौद्धिक ब्रह्मानन्द केशवचन्द्र सेन की बौद्धिकता अपढ़ परमहंस के समक्ष नत हो गयी थी। श्री रामकृष्ण परमहंस की आध्यात्मिक लीला-चर्या के जागतिक सरोकार को यह पुस्तक वैचारिक विधि से रेखांकित करती है। परमहंस के लीला-प्रसंग के मार्मिक तथ्यों के आधार पर लेखक ने इस सत्य को उजागर किया है कि श्री रामकृष्ण की लीला-चर्या मनुष्य मात्र की यातना के प्रति सदा संवेदनशील रहती थी। भारतीय ज्ञानपीठ का लोकप्रिय प्रकाशन 'कल्पतरु की उत्सव लीला' के लेखक कृष्ण बिहारी मिश्र की परमहंस-प्रसंग पर केन्द्रित यह दूसरी पुस्तक है। मिश्रजी इस पुस्तक को 'कल्पतरु की उत्सव लीला' का पूरक अध्याय मानते हैं। 'कल्पतरु की उत्सव लीला' का रचना-विन्यास सर्जनशील है। यह पुस्तक श्री रामकृष्ण की भूमिका का मूल्यांकन आधुनिक विचारकोण से करती है, और परमहंस-लीला की प्रासंगिकता को रेखांकित करती है। ज्ञानपीठ आश्वस्त है, विभिन्न आधुनिक विचार-बिन्दुओं पर केन्द्रित कृष्ण बिहारी मिश्र का यह विमर्श आधुनिक विवेक द्वारा समर्थित समादृत होगा। उन्नीसवीं सदी के तथाकथित नवजागरण को निरखने-परखने की एक नयी वैचारिक खिड़की खोलती है यह पुस्तक 'न मेधया'।

कृष्णा बिहारी मिश्र (Krishna Bihari Mishra)

कृष्णा बिहारी मिश्र  जन्म: 1 जुलाई, 1936 बलिहार, बलिया (उ.प्र.)। शिक्षा: एम.ए. (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं पीएच.डी. (कलकत्ता विश्वविद्यालय)।1996 में अंगवासी मानिंग कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष के प

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