Hindi Sahityetihas Ke Kuchhek Jwalant Prashn

Hardbound
Hindi
9789387648463
1st
2018
200
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वस्तुतः यह पुस्तक हिन्दी साहित्येतिहास के कतिपय महत्त्वपूर्ण पर उपेक्षित मोड़ों का पुनराख्यान है। पन्द्रह आलेखों द्वारा कहीं लोक-ग्राह्यता का परीक्षण है, कहीं स्त्री एवं दलित चेतना के विकास की प्रारम्भिक पृष्ठभूमि की खोज है तो कहीं प्रासंगिकता की परख का प्रयास है। यदि बच्चन के काव्य में अनुभूत संघर्ष के गान का विवेचन है तो दूसरी ओर हिन्दी कथा-साहित्य के विकास और परिवर्तन तथा समाजशास्त्रीय आलोचना-दृष्टि के विकास में क्रमशः अज्ञेय एवं रामविलास शर्मा के अवदान और महत्त्व का निरूपण, पन्त की कविताओं का शैली-वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर विवेचन एवं धूमिल के काव्यभाषा की खोज भी ग्रन्थ के उपादेय पक्ष हैं। ‘साहित्य का समाजशास्त्र' एवं 'साहित्येतिहास लेखन की समस्याएँ' ऐसे आलेख हैं जिनसे पुस्तक-लेखक की दृष्टि का परिचय मिलता है। लेखक यहीं नहीं रुकता, वह इक्कीसवीं सदी के प्रथम दशक के रचनात्मक साहित्य को भी निरखता-परखता है। यद्यपि सभी आलेख अलग-अलग हैं, किन्तु कहीं-न-कहीं एक-दूसरे से जुड़े हुए भी हैं। निस्सन्देह। यह पुस्तक साहित्येतिहास के अनेक ज्वलन्त प्रश्नों का समाधान अपने में समेटे है।

राजमणि शर्मा (Rajmani Sharma)

प्रो. राजमणि शर्मा 2 नवम्बर, 1940 को लम्भुआ, सुल्तानपुर (उ.प्र.) गाँव की माटी में जन्म। प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा के पश्चात् काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी), भाषाविज्ञान में द्विवर्षीय स

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